शुक्रवार, 10 मार्च 2017

क्या 37 साल पुराना रिकार्ड कांग्रेस का टुट पायेगा

शुरुआती रुझानों में साफ नजर आ रहा है कि यूपी में एक बार फिर मोदी लहर काम कर गई है. होली से पहले भगवा रंग प्रदेश की सड़कों पर नजर आने लगा है. शुरुआती दौर में हुई मतगणना के नतीजों को देख लोगों को 1980 में हुए चुनावों की याद आ रही है. 1980 के विधानसभा चुनावों में 309 सीटें मिली थीं. उस वक्त यूपी में कुल 425 विधानसभा सीटें थीं. खास बात यह थी कि बीजेपी को महज 11 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्यूलर (JNP(SC)), उन्हें कुल 59 सीटों पर जीत हासिल की थी. ताजा आंकड़ों के मुताबिक 403 सीटों की विधानसभा में बीजेपी 280 से अधिक सीटों पर बढ़त बना चुकी है. सत्तारुढ दल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन 75 के आसपास है तो बीएसपी 25 सीट पर. अब सभी को इंतजार परिणामों का है. देखना है कि बीजेपी इस बार कांग्रेस का पुराना रिकॉर्ड तोड़ पाती है या नहीं. हालांकि बीजेपी कार्यालय में सुबह से ही जोश का माहौल है और जश्न मनाया जा रहा है. आपको बता दें कि वह यूपी की आठवीं विधानसभा थी और यह यूपी की 17वीं विधानसभा की तस्वीर है. 1980 में कांग्रेस की ओर से स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह की ताजपोशी हुई थी. अब देखना है कि बीजेपी की ओर से इस बार किसके सिर सत्ता का ताज होगा. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सहित सभी बड़े नेता कह चुके हैं कि यूपी का सीएम चेहरा संसदीय बोर्ड की बैठक में तय किया जाएगा.

अखिलेश को महगां बापू को हानिकारक समझना

यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव का 'विकास सूत्र' फेल हो गया है. विकास के मामले में पीएम मोदी उन पर भारी पड़ गए हैं. लेकिन यूपी में समाजवादी पार्टी की हार क्या पीएम मोदी और बीजेपी की रणनीति की जीत है. या फिर अखिलेश यादव का अति आत्मविश्वास उनकी हार का सबब बना है. मुलायम-शिवपाल को किनारे किया कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है. 2014 में भी बीजेपी ने जब पूर्ण बहुमत की सरकार केंद्र में बनाई तो यूपी ने 71 सांसद पार्टी को दिए. ऐसे में मोदी और अमित शाह ब्रिगेड को चुनौती देना उतना आसान नहीं था. बावजूद इसके अखिलेश यादव अपने दम पर यूपी के रणक्षेत्र में कूद गए. अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव को किनारे कर दिया. पार्टी पर खुद कब्जा कर लिया. मुलायम सिंह ने अपनी छोटी बहु अपर्णा यादव के अलावा किसी उम्मीदवार के लिए रैली नहीं की. शिवपाल यादव भी बस जसवंतनगर की अपनी सीट तक ही सीमित रहे. मुलायम-शिवपाल की जोड़ी वह जोड़ी है जिसने यूपी की सत्ता से कांग्रेस और बीजेपी को बाहर कर समाजवादी का परचम लहराया. लेकिन पूरे चुनाव में मुलायम-शिवपाल घर में बैठे रहे. Exclusive Election Result TV: अंजना ओम कश्यप के साथ Live कांग्रेस गठबंधन बना मुसीबत अखिलेश यादव ने परिवार की लड़ाई के बाद समाजवादी पार्टी पर अपना कब्जा कर लिया. अखिलेश ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के इरादे से राहुल गांधी के साथ जठजोड़ किया. गठबंधन के तहत कांग्रेस को 105 सीटें दी गईं. ऐसे में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं में इस फैसले से गुस्सा पनपा. नतीजा ये रहा कि समाजवादी पार्टी में भितरघात की खबरें आईं. डूबते जहाज का सहारा इतना ही नहीं जब कांग्रेस को देश की राजनीति का डूबता जहाज माना जा रहा है. ऐसे में सपा का उसके साथ गठबंधन बड़ा हैरान करने वाला था. 27 सालों से यूपी में कांग्रेस की अपनी कोई जमीन नहीं बची. शिवपाल यादव ने सरेआम कांग्रेस के साथ गठबंधन पर सवाल उठाते हुए कहा था कि जिस पार्टी की 4 सीटें जीतने की हैसियत नहीं , उसे 105 सीटें देना नुकसानदायक होगा. Assembly Election Results 2017: चुनाव नतीजों की विस्तृत करवेज Live पीएम पर वार का उल्टा असर अखिलेश यादव ने अपनी चुनावी रैलियों में पीएम मोदी को नोटबंदी, कालाधन वापस लाने जैसे मुद्दों पर घेरा. साथ ही गुजरात के गधों के प्रचार पर भी अखिलेश ने मोदी को घेरा. हालांकि मोदी ने गधे वाले बयान को अपने पाले में ले लिया और कहा कि वह देश सेवा में गधे की तरह लगे हुए हैं. विकास के नाम पर था हाईवे यूपी में सात चरणों में चुनाव पूरे हुए. करीब एक महीने तक चले चुनाव में अखिलेश ने 250 के आसपास रैलियां कीं. अखिलेश ने अपनी हर रैली में विकास के नाम पर वोट मांगा. लेकिन विकास के नाम पर अखिलेश के पास एक्सप्रेस वे के अलावा कोई खास मुद्दा नहीं रहा. जबकि बिजली और बिगड़ी कानून व्यवस्था सीधे तौर पर अखिलेश के खिलाफ बड़ा मुद्दा बना. बंटा मुस्लिम वोट बसपा सुप्रीमो मायावती ने साफ तौर पर यूपी के मु्स्लिम वोटरों से हाथी का साथी बनने की अपील की. मायावती ने मुसलमानों के बीच ये संदेश दिया कि यूपी में बीजेपी को रोकना है तो मुसलमानों को बसपा को वोट देना चाहिए. इसी रणनीति के चलते मायावती ने 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया. हालांकि मायावती की सोशल इंजीनियरिंग उनके अपने काम भी नहीं आई. लेकिन इस दांव ने अखिलेश को जरूर किनारे लगा दिया है. अखिलेश पर नहीं था मुलायम-शिवपाल को भरोसा 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. पार्टी महज पांच सीटों पर सिमट गई. नतीजों के बाद मुलायम सिंह का भरोसा अखिलेश से उठ गया. दरअसल मुलायम सिंह ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर कहा कि लोकसभा चुनाव में अखिलेश के कहने पर टिकट बांटे गए और पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. यही वजह थी चुनाव से पहले परिवार के बीच लंबी खींचतान चली. दरअसल मुलायम सिंह और शिवपाल नहीं चाहते थे कि टिकट बांटने का अधिकार अखिलेश को मिले. टिकट बांटने के अधिकार से जो झगड़ा शुरू हुआ वो आखिरकार अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर खत्म हुआ.

BJP जिती तो जनता नोट बंदी से भी कडे फैसले के लिए रहे तैयार

देश में पांच राज्यों के चुनाव नतीजे कुछ घंटों में आपके सामने होंगे. इन नतीजों में राज्यों की नई सरकार तो तय होगी ही लेकिन खासतौर पर उत्तर प्रदेश चुनाव का नतीजा फैसला करेगा कि 8 नवंबर को केन्द्र सरकार द्वारा लिया गया नौटबंदी का फैसला सही था या गलत. इसके साथ ही, अगर विधानसभा चुनाव के नतीजे मोदी के पक्ष में आ गए तो जनता को नोटबंदी से भी कड़े फैसलों के लिए तैयार रहना पड़ सकता है. क्यों मोदी लेंगे और सख्त फैसले मोदी ने नोटबंदी के बाद 50 दिन तक अपने कई भाषणों में आर्थिक और करप्शन फ्री सिस्टम के लिए सुधार की बात की थी. इसके लिए उन्होंने कई मौकों पर कहा था- हम यही नहीं रुकेंगे, नोटबंदी से भी कड़े फैसले लिए जाएंगे. Exclusive Election Result TV: अंजना ओम कश्यप के साथ Live और क्या हो सकते हैं कड़े फैसले 1. मोदी सरकार नोटबंदी की तरह बेनामी प्रॉपर्टी को लेकर सरकार बड़ा कदम उठा सकती है. कानून पहले से पास है और जल्द ही उसे लागू करने की योजना है. 2. सब्सिडी में कटौती मोदी कई मौकों पर जनता को सब्सिडी छोड़ने के लिए कह चुके हैं. उनकी अपील पर पिछले तीन साल में लाखों लोगों ने एलपीजी सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ी है. 3. गोल्ड मोनेटाइजेशन में सख्ती सरकार गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम को सख्त कर सकती है. 4. GST लागू करना GST लागू होने के बाद राज्यों में महंगाई बढ़ेगी. इससे पार पाने के लिए शायद ही केंद्र सरकार कोई कदम उठाए. महंगाई बढ़ने का सबसे बड़ा कारण ये हो सकता है कि वन टैक्स पॉलिसी के लागू होने से छोटे और मध्यम कारोबारियों को नुकसान होगा. Assembly Election Results 2017: चुनाव नतीजों की विस्तृत करवेज Live 5. बैंक रिफॉर्म बैंक डिफॉल्टर के खिलाफ सख्त होगी सरकार मोदी सरकार बैंकों का पैसा मारकर बैठे लोगों के खिलाफ सख्त हो सकती है. स्टेट बैंक का मर्जर इसी लिए चल रहा है. कुछ ऐसी एजेंसियां भी खुद को सामने ला रही हैं जो बैंकों से उनको मिलने वाला कर्ज खरीद सकती हैं और फिर उसे वे अपने ढंग और मनमानी तरीके से वसूलेंगी. 6. नोटबंदी में गड़बड़ी करने वालों पर गिरेगी गाज नोटबंदी के दौरान कई प्राइवेट बैंकों ने गड़बड़ी की थी. सरकार ने उनसे सीसीटीवी फुटेज रखने के लिए कहा था. कई खातों में पैसे डाले गए थे, उनकी जांच शुरू होगी. मोदी ने जब लिया था नोटबंदी का फैसला? 8 नवंबर को प्रधानमंत्री ने देश में सर्वाधिक प्रचलित 500 और 1000 रुपये की लगभग 86 फीसदी करेंसी को प्रतिबंधित कर दिया था. इस फैसले का पूरे देश पर व्यापक असर पड़ा. आम आदमी बैंक और एटीएम की लाइनों में खड़ा हो गया. तो देशभर में कैश पर आधारित कारोबार ठप पड़ गया. कैश की तंगी और गिरते आर्थिक आंकड़ों से केन्द्र सरकार भी सकते में आ गई.

Up मे BJP को पु्र्णबहुमत देखे किसको कहा कितना सीट

Assembly Election Results 2017 Uttar Pradesh (402/403)* SP-CONG - 73BJP+ - 304BSP - 17Others - 8 Punjab (117/117)* SAD-BJP - 28CONG - 65AAP - 24Others - 0 Uttarakhand (70/70)* CONG - 11BJP - 53UKD - 0Others - 6 Goa (23/40)* CONG - 11BJP - 8MGP+ - 0AAP - 0Others - 4 Manipur (39/60)* CONG - 15BJP - 14NPF - 0TMC - 0Others - 10 *(Win+Lead/Total); Source

ईस websiteपे ताजा updateमिलेंगे चुनाव का

eci.nic.in

थोड़े देर मे गिनती होगी पाच राज्यों की वोटों की सख्या

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के लिए हुए विधानसभा चुनावों की मतगणना आज होगी. मतगणना के मद्देनज़र पांचों राज्यों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में सुबह 8 बजे से मतदान की गिनती शुरू होगी. देश के राजनीतिक भविष्य और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनके सुधार के एजेंडे के परिप्रेक्ष्य में एक तरह से जनमत संग्रह समझे जाने वाले इन चुनावों की मतगणना कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच होगी. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन बीजेपी के रथ को रोकने को लेकर आशान्वित हैं, जिसे बिहार और दिल्ली में कड़ी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस का दावा है कि पंजाब की सत्ता की बागडोर इस बार उसे मिलने वाली है. वहीं पार्टी उत्तराखंड और मणिपुर में एक बार फिर से सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त दिख रही है. आम आदमी के लिए भी यह चुनाव काफी महत्व रखता है, जो दिल्ली से बाहर अपनी राजनीतिक साख जमाने की कोशिश में जुटी है और पार्टी ने पंजाब और गोवा में कड़ी चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. केवल उत्तर प्रदेश में चुनाव केंद्रों पर 20,000 केंद्रीय बलों की तैनाती की गई है. इस तरह देश भर में चुनाव केंद्रों पर केंद्रीय बलों के कई हजार जवानों को तैनात किया गया है. उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में 78 मतगणना केंद्र बनाए गए हैं. राज्य में विधानसभा की कुल 403 सीटें हैं. चुनाव आयोग ने की पूरी तैयारी चुनाव आयोग ने मतगणना के लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं और मतगणना कक्ष के भीतर मोबाइल ले जाने की अनुमति नहीं होगी. सामान्य पर्यवेक्षकों के इतर हर मतगणना टेबल पर एक माइक्रो-आब्जर्वर को भी तैनात किया जाएगा. मतगणना केंद्रों के आसपास त्रिस्तरीय सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं. मतगणना केंद्रों के भीतर केवल केंद्रीय बलों की तैनाती की जाएगी. बाहरी क्षेत्र में स्थानीय पुलिस को ड्यूटी पर लगाया जाएगा. मतगणना केंद्रों के भीतर किसी भी अनधिकृत व्यक्ति के प्रवेश को रोकने के लिए अन्य राज्यों के पुलिस बलों की तैनाती की गई है. प्रवेश स्थल पर भीड़ और लोगों के प्रवेश को नियंत्रित करने के लिए एक वरिष्ठ मजिस्ट्रेट को तैनात किया जाएगा. मतगणना केंद्र के 100 मीटर की परिधि में वाहनों को प्रवेश की इजाजत नहीं होगी. स्ट्रांग रूम से मतगणना कक्ष तक ईवीएम को ले जाने की निगरानी के लिए अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की 403 सीटों पर वोटों की गिनती की जाएगी. देश के पांच राज्यों में संपन्न हुए विधान सभा चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा यूपी विधानसभा की ही रही. देश के सबसे बड़े सूबे की सत्ता हासिल करने के लिए सभी दलों में होड़ है. गौरतलब है कि राज्य में सात चरणों में चुनाव कराया गया था. पहले चरण में 15 जिलों की 73 विधानसभा सीटों पर 11 फरवरी को वोट डाले गए थे. पहले चरण में शामली, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, बागपत जैसे जिले शामिल थे. दूसरे चरण में 11 जिलों की 67 सीटों के लिए 15 फरवरी को वोट डाले गए थे. तीसरे चरण में 69 सीटों पर 19 फरवरी को चुनाव कराया गया था. चौथे चरण में 53 सीटों पर 23 फरवरी को वोटिंग हुई. पांचवें चरण में 52 सीटों के लिए 27 फरवरी को तथा छठे चरण में 49 सीटों पर 4 मार्च को चुनाव संपन्न हुआ. सातवें चरण में 40 सीटों पर 8 मार्च को वोट डाले गए. पंजाब पंजाब विधानसभा चुनाव की 117 सीटों पर मतगणना होगी. राज्य में 4 फरवरी को वोट डाले गए थे. मतदान में राज्य के 1145 उम्मीदवारों के राजनीतिक भाग्य का फैसला हो जाएगा. चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी-अकाली दल, कांग्रेस और पहली बार किस्मत आजमा रही आम आदमी पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. चुनाव आयोग के मुताबिक पंजाब में कुल 75 फीसदी मतदान हुआ था. चुनावों में मतदाताओं के जनादेश पाने की होड़ में सत्तारुढ़ अकाली दल के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से लेकर, आम आदमी पार्टी के भगवंत मान और कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बादल समेत राजनीति की कई प्रमुख हस्तियां शामिल हैं. उत्तराखंड उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की 69 सीटों पर वोटों की गिनती की जाएगी. राज्य में 15 फरवरी को वोट डाले गए थे. इस बार कुल 637 उम्मीदवार मैदान में हैं जिनमें 575 पुरुष, 60 महिला प्रत्याशी और 2 अन्य प्रत्याशी शामिल हैं. यहां सत्ताधारी कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुख्य मुकाबला है. बीएसपी, उत्तराखंड क्रांति दल, शिवसेना, एनसीपी, सीपीआई ने भी यहां अपने उम्मीदवार उतारे हैं. वोटों की गिनती के साथ ही मुख्यमंत्री हरीश रावत, बीजेपी नेता सतपाल महाराज

2000 नये नोट की कीमत केवल 3.77 रूपये और पुराने 500 की कीमत 2.87 रूपये

8 नवंबर को नोटबंदी के आदेश के बाद से देशभर के बैंकों और अनेक संस्थाओं के पास 500 और 1000 रुपये की प्रतिबंधित करेंसी जमा की जाने लगी. 8 नवंबर की रात 12 बजे तक दोनों 500 और 1000 रुपये की करेंसी का मार्केट रेट उसकी फेसवैल्यू के बराबर थी. लेकिन अब बैंकों में जमा रद्दी हो चुकी करेंसी चूरन की नोट जैसी हो गई है. रिजर्व बैंक के लिए पुरानी करेंसी अगर 2 से 3 रुपये के बराबर थी तो नई जारी हुई 2000 रुपये की करेंसी भी चूरन के दाम बराबर ही है. यूं बढ़ती-घटती है करेंसी की वैल्यू वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक मौजूदा समय में बैंकों में पड़ी प्रतिबंधित करेंसी में 500 रुपये की प्रति नोट 2.87 रुपये से लेकर 3.09 रुपये तक है. वहीं प्रतिबंधित 1000 रुपये की करेंसी 3.34 रुपये से लेकर 3.77 रुपये मात्र है. नोट की कीमत में यह दायरा उसके प्रिंटिंग के साल, डिजाइन, प्रिंट की गई मशीन की उम्र और प्रिंट करने वाले कर्मचारी के स्किल पर निर्भर है. जेटली ने लोकसभा में बताया कि नोटबंदी के बाद बाजार में उतारी गई 2000 रुपये की नई करेंसी की कीमत पुरानी एक हजार रुपये के बराबर है. करेंसी की कॉस्टिंग पर बोलते हुए जेटली ने कहा कि करेंसी की कीमत आंकने के लिए उसमें लगे मटीरियल और लेबर कॉस्ट पर निर्भर है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि 8 नवंबर को नोटबंदी के फैसले के बाद से लगभग 12 लाख नई करेंसी नोट रिजर्व बैंक द्वारा जारी की जा चुकी है. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में जेटली ने बताया कि रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 24 फरवरी तक 11 लाख 64 हजार नई करेंसी से ज्यादा बाजार में उतारी जा चुकी है. मुश्किल है बैंक में जमा पुरानी करेंसी का टोटल हालांकि लोकसभा में जमा की जा चुकी पुरानी 500 और 1000 रुपये की करेंसी की संख्या पर उठे सवाल पर वित्त मंत्री ने बताया कि इसका आंकड़ा एकत्रित करना बेहद मुश्किल काम है. इस आंकड़े को पता करने के लिए रिजर्व बैंक को जमा हुए प्रत्येक करेंसी की परख करनी होगी. जमा हुई करेंसी में से नकली करेंसी को हटाया जाएगा और जबतक यह काम नहीं कर लिया जाता रिजर्व बैंक के लिए जमा हो चुकी पुरानी करेंसी का ब्यौरा देना मुमकिन नहीं होगा. नोटबंदी की दिसंबर में 5000 करोड़ बढ़ी सरकार की आय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सदन में यह भी बताया कि 8 नवंबर को लागू नोटबंदी के बाद दिसंबर 2016 में सरकार के राजस्व में लगभग 5,000 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है. गौरतलब है कि केन्द्र सरकार के मुताबिक दिसंबर 2016 में सरकार की नेट डायरेक्ट टैक्स वसूली 1,40,824 करोड़ रुपये रही. वहीं एक साल पहले दिसंबर 2015 में यह वसूली 1,35,660 करोड़ रुपये थी.

मिरजापुर के चुनार किले चुनारगढ की रहस्य

चंद्रकांता के तिलिस्‍मी किले में पुलिस के कदमों की गूंज Published: June 3 2011, 9:45 [IST] Written by: सौरव मौर्या Chandrakanta लखनऊ। महोबा के वीरों आल्हा व ऊदल की लोक कथाओं से लेकर टेलीविजन धारावाहिक चन्द्रकांता तक तिलिस्‍म व रोमांच का पर्याय रहे चुनारगढ़ के किले को लोग देखने से महरूम हैं। प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बने चुनारगढ़ के किले में पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र चल रहा है। पुलिस कर्मियों को किले की चहारदीवारी के भीतर प्रशिक्षण तो मिल रहा है लेकिन उनके कदमों की धमक से यह जर्जर किला कब धराशाही हो जाएगा यह कोई नहीं जानता। चुनारगढ़ का किला जिसके बारे में लोगों ने सिर्फ किताबों में पढ़ा है या फिर धारावाहिक में देखा। क्या वास्तव में किले के भीतर वह सबकुछ होता होगा जिसे वे टेलीविजन स्क्रीन पर देख रहे हैं? क्या हाथों के एक इशारे से किले की दीवार खिसक जाती होगी या फिर ताली बजाने से पैर के नीचे की फर्श से आग निकलने लगती होगी? इन प्रश्नों के उत्तर तो वह किला ही दे सकता है जिसके बारे में लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। राजा विक्रमादित्य ने यह किला अपने बड़े भाई भर्तहरी के लिए बनवाया था। किले में उनकी समाधि आज भी विद्यमान है। वीर रणबांकुरे आल्हा का विवाह सालवा के साथ इसी किले में हुआ। किले में सालवा मण्डप के अवशेष मौजूद है। विन्ध्य पर्वत के ऊपर स्थित इस किले के साथ कई रहस्यमय कहानियां जुड़ी हुई हैं। किले को प्रसिद्धि उस वक्त मिली जब हिन्दी उपन्यासकार देवकीनन्दन खत्री ने चन्द्रकांता पुस्तक में इस किले के तिलिस्म के बारे में लिखा। इतिहासकार कहते हैं कि उत्तर भारत पर शासन करने वाले प्रत्येक शासक के मन में यह इच्छा हमेशा रही कि वे किले पर कब्जा जमाएं क्योंकि किला सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। मुस्लिम शासक शुआउद्दौला ने किले पर शासन किया जिसके बाद अंग्रेजों ने इसे हथिया लिया। देश की आजादी के बाद यूपी सरकार ने किले को सरकारी सम्पत्ति घोषित कर लिया जिसके बाद किले के राज व तिलस्म किले में ही दब कर रहे गए। इतिहासकार बताते हैं कि किले के भीतर आज भी कई ऐसे राज दफन हैं जिन्हें खोजा जाए तो बहुत कुछ सामने आ सकता है। आजादी के बाद किले के कई द्वार बंद कर दिए गये। किले में कई ऐसी सुरंगे भी हैं जो उत्तर भारत के तमाम हिस्सों को किले से जोड़ती हैं। मिर्जापुर के लोग कहते हैं कि किले का तिलस्म व रहस्य आज भी बरकरार है जिस कारण वहां आम लोगों को जाना प्रतिबन्धित हैं। हालांकि सरकार तंत्र इस बात को नहीं मानता। प्रशासन का कहना है कि किले में पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र होने के कारण आम लोगों को भीतर प्रवेश की इजाजत नहीं है। मिर्जापुर के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि उज्जैन के प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के पश्चात् किले पर 1141 से 1191 तक प्रथ्वीराज चौहान का कब्जा रहा। उसके बाद शहाबुद्दीन गोरी 1198 में किले पर कब्जा कर लिया और लम्बे समय तक उसने उसके वंशजो ने राज किया। वर्श 1333 में स्वामीराज नाम के राजा ने किले पर अपना हक जमाया। इस क्रम में जौनपुर के मुहम्मदशाह शर्की ने 1445 में तथा सिकन्दरशाह लोधी ने 1512 में किले पर अपना आधिपत्य साबित किया। इस वक्त तक तो किले के हालात कुछ बेहतर थे। किले की खूबसूरती व मजबूत बुर्ज आदि मौजूद थे लेकिन इससे बाद से ही किले की दुर्दशा शुरू हुई। 1529 में बाबर तथा 1530 में शेरशाहसूरी ने किले पर हक जमाया। लेखक अबुलफजल ने आईने अकबरी में किले की प्राचीनता व रहस्तय को काफी हद तक सहेजने का कार्य किया। फजल ने किले को चन्नार नाम से सम्बोधित किया है।

विन्ध्याचल विन्ध्यवासिनी देवी मा

विन्ध्यवासिनी चित्र:Bindhya.jpg नेपाल के पोखरा का विन्ध्यवासिनी मन्दिर 'भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विन्ध्याचल सदा से उनका निवास-स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्। हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचलपर आप सदैव विराजमान रहती हैं। पद्मपुराण में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है- विन्ध्येविन्ध्याधिवासिनी। श्रीमद्देवीभागवत के दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकर्ता ब्रह्माजीने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीषसे हुआ। त्रेता युग में भगवान श्रीरामचन्द्र सीताजीके साथ विंध्याचल आए थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वर महादेव से इस शक्तिपीठ की माहात्म्य और बढ गया है। द्वापरयुग में मथुरा के राजा कंस ने जब अपने बहन-बहनोई देवकी-वसुदेव को कारागार में डाल दिया और वह उनकी सन्तानों का वध करने लगा। तब वसुदेवजीके कुल-पुरोहित गर्ग ऋषि ने कंस के वध एवं श्रीकृष्णावतार हेतु विंध्याचल में लक्षचण्डी का अनुष्ठान करके देवी को प्रसन्न किया। जिसके फलस्वरूप वे नन्दरायजीके यहाँ अवतरित हुई। मार्कण्डेयपुराण के अन्तर्गत वर्णित दुर्गासप्तशती (देवी-माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर भगवती उन्हें आश्वस्त करते हुए कहती हैं, देवताओं वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवें युग में शुम्भऔर निशुम्भनाम के दो महादैत्य उत्पन्न होंगे। तब मैं नन्दगोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी। लक्ष्मीतन्त्र नामक ग्रन्थ में भी देवी का यह उपर्युक्त वचन शब्दश: मिलता है। ब्रज में नन्द गोप के यहाँ उत्पन्न महालक्ष्मीकी अंश-भूता कन्या को नन्दा नाम दिया गया। मूर्तिरहस्य में ऋषि कहते हैं- नन्दा नाम की नन्द के यहाँ उत्पन्न होने वाली देवी की यदि भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के आधीन कर देती हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के श्रीकृष्ण-जन्माख्यान में यह वर्णित है कि देवकी के आठवें गर्भ से आविर्भूत श्रीकृष्ण को वसुदेवजीने कंस के भय से रातोंरात यमुनाजीके पार गोकुल में नन्दजीके घर पहुँचा दिया तथा वहाँ यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा ले आए। आठवीं संतान के जन्म का समाचार सुन कर कंस कारागार में पहुँचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर जैसे ही पटक कर मारना चाहा, वैसे ही वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुँच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित किया। कंस के वध की भविष्यवाणी करके भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई। मन्त्रशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ शारदातिलक में विंध्यवासिनी का वनदुर्गा के नाम से यह ध्यान बताया गया है- सौवर्णाम्बुजमध्यगांत्रिनयनांसौदामिनीसन्निभां चक्रंशंखवराभयानिदधतीमिन्दो:कलां बिभ्रतीम्। ग्रैवेयाङ्गदहार-कुण्डल-धरामारवण्ड-लाद्यै:स्तुतां ध्यायेद्विन्ध्यनिवासिनींशशिमुखीं पा‌र्श्वस्थपञ्चाननाम्॥ अर्थ-जो देवी स्वर्ण-कमल के आसन पर विराजमान हैं, तीन नेत्रों वाली हैं, विद्युत के सदृश कान्ति वाली हैं, चार भुजाओं में शंख, चक्र, वर और अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं, मस्तक पर सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्र सुशोभित है, गले में सुन्दर हार, बांहों में बाजूबन्द, कानों में कुण्डल धारण किए इन देवी की इन्द्रादि सभी देवता स्तुति करते हैं। विंध्याचलपर निवास करने वाली, चंद्रमा के समान सुन्दर मुखवाली इन विंध्यवासिनी के समीप सदा शिव विराजित हैं। सम्भवत:पूर्वकाल में विंध्य-क्षेत्रमें घना जंगल होने के कारण ही भगवती विन्ध्यवासिनीका वनदुर्गा नाम पडा। वन को संस्कृत में अरण्य कहा जाता है। इसी कारण ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी विंध्यवासिनी-महापूजा की पावन तिथि होने से अरण्यषष्ठी के नाम से विख्यात हो गई है