सोमवार, 3 अप्रैल 2017

दुनिया की सबसे खुबसूरत महिला को क्या देखा आपने ये फोटो

"दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला को क्या देखा आपने....देखे फोटोज News Track Live 3 Apr. 2017 21:18 मशहूर अमेरिकी सिंगर और पॉप स्टार बेयॉन्से दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला है. यह हम नही एक सर्वे में सामने आया है तथा साथ ही साथ बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर आई है. जी हाँ बॉलीवुड की देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है. बॉलीवुड का चकाचक चेहरा एक बार फिर से सुर्ख़ियो में बन गया है. इसके पीछे का कारण है उनकी बेबाक अदा जी हाँ, सुनने में आया है की अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा को दुनिया की दूसरी मोस्ट ब्यूटीफुल वुमन करार दिया गया है. Buzznet के सर्वे ने प्रियंका चोपड़ा को यह उपलब्धि प्रदान की है. तो वही इस मामले में टॉप पर है हॉलीवुड की टॉप पॉप सिंगर बेयोंसे जो के इस लिस्ट में टॉप पर है. ये दावा किया है कि लॉस एंजिलिस स्थित सोशल मीडिया नेटवर्क बजनेट ने. दरअसल बजनेट ने पिछले दिनों दुनिया की 30 महिलाओं के लिए एक सर्वे कराया था. इस सर्वे में पॉप स्टार बेयॉन्से को सबसे ज्यादा वोट और लाइक्स मिला." - दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला को क्या देखा आपने....देखे फोटोज http://tz.ucweb.com/4_i1iH

"पुजारी ने सपने मे देखी 30 मीटर आगे जो हुआ 'गजब'ही है |

"पुजारी ने सपने में देखी 30 मीटर लंबी सुरंग, आगे जो हुआ वो 'गजब' ही है Dainikbhaskar.com 03 Apr.2017 16:54 लखनऊ. दौलतगंज के लालाघाट प्राचीन मंदिर में करीब 30 मीटर लम्बी सुरंग मिली है। जलनिगम रोड पर बने पम्पिंग स्टेशन के पास शिव मंदिर के पास ये सुरंग मिली है। शिव मंदिर की साफ़ सफाई करने वालों को ये सुरंग सफाई के दौरान मिली। सुरंग में मिला शिवलिंग, डमरू और त्रिशूल हालांकि मंदिर के पुजारी ने बताया की ये सुरंग मैंने सपने में देखी थी और सुबह मैं मंदिर की साफ़ सफाई कर रहा था तो सपने की बात याद आ गई। मैंने उस जगह पर लोगों के साथ मिल कर खुदाई शुरू की तो वहां ये सुरंग मिली। पुजारी के अनुसार सुरंग के अन्दर शिवलिंग, डमरू और त्रिशूल भी मिला। बता दें, इसके पहले भी खुदा बख्श कोठी की सुरंग काफी दिनों तक चर्चा का विषय बनी हुई थी। ऐसे में हो सकता है कि ये सुरंग भी पुराने लखनऊ की इमारतों से अन्दर ही अन्दर जुड़ी हो।" - पुजारी ने सपने में देखी 30 मीटर लंबी सुरंग, आगे जो हुआ वो 'गजब' ही है http://tz.ucweb.com/4_geqt

राम नवमी

विश्व मे सभी राम भक्तों को सभी हिन्दुत्व से ,अपने-अपने धर्म पर चलो सबसे प्रेम करो मे विस्वास रखने वाले महान् व्यक्तियों को कोटि कोटि राम नवमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ |

अगर आप हिन्दू है,तो जरूर जाने ये 11 बातें

क्या भगवान राम या भगवान कृष्ण कभी इंग्लैंड के हाऊस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य रहे थे?  नहीं ना? फिर लॉर्ड रामा, लॉर्ड कृष्णा कहने की बजाय सीधे सीधे भगवान राम, भगवान कृष्ण कहियेग। किसी की मृत्यू होने पर "RIP" मत कहिये। "ओम शांती", "सदगती मिले", अथवा "मोक्ष प्राप्ती हो" इन शब्दों का इस्तेमाल करें। आत्मा कभी एक स्थान पर आराम नहीं करती। या तो आत्मा का पुनर्जन्म होता है या उसे मोक्ष मिल जाता है। अपने रामायण एवं महाभारत जैसे ग्रंथों को मायथॉलॉजी मत कहिये। ये हमारा गौरवशाली इतिहास है और राम एवं कृष्ण हमारे ऐतिहासिक देवपुरुष हैं, कोई मायथोलॉजिकल कलाकार नहीं। मूर्ती पूजा के बारे में कभी अपराधबोध न पालें यह कहकर की "अरे ये तो केवल प्रतीकात्मक है।" सारे धर्मों में मूर्ती पूजा होती है, भले ही वह ऐसा न कहें। गणेशजी और हनुमानजी को  "Elephant god" या "Monkey god" न कहें। वे केवल हाथीयों तथा बंदरों के देवता नहीं है। श्री गणेश एवं श्री हनुमानजी कहें। अपने मंदिरों को प्रार्थनागृह न कहें। मंदिर देवालय होते हैं, भगवान के निवासगृह। वह प्रार्थनागृह नहीं होते। मंदिर में केवल प्रार्थना नहीं होती। अपने बच्चों के जन्मदिनपर दीपक बुझा कर अपशकुन न करें। अग्निदेव को न बुझाएं बल्की बच्चों को दीप की पार्थना सिखाएं "तमसो मा ज्योतिर्गमय" (हे अग्नि देवता, मुझे अंधेरे से उजाले की ओर जाने का रास्ता बताएं"। ये सारे प्रतीक बच्चों के मस्तिष्क में गहरा असर करते हैं। कृपया "spirituality" और "materialistic" जैसे शब्दों का उपयोग करने से बचें। हिंदूओं के लिये सारा विश्व दिव्यत्व से भरा है। "spirituality" और "materialistic" जैसे शब्द अनेक वर्ष पहले युरोप से यहां आये जिन्होंने चर्च और सत्ता मे फरक किया था या विज्ञान और धर्म में। इसके विपरित भारतवर्ष में ऋषीमुनी हमारे पहले वैज्ञानिक थे और सनातन धर्म का मूल विज्ञान में ही है। यंत्र, तंत्र, एवं मंत्र यह हमारे धर्म का ही हिस्सा है। "Sin" इस शब्द के स्थान पर "पाप" शब्द का प्रयोग करें। हम हिंदूओं मे केवल धर्म (कर्तव्य, न्यायपरायणता, एवं प्राप्त अधिकार) और अधर्म (जब धर्मपालन न हो) है। पाप अधर्म का हिस्सा है। ध्यान के लिये 'meditation' एवं प्राणायाम के लिये 'breathing exercise' इन संज्ञाओं का प्रयोग न करें। यह बिलकुल विपरीत अर्थ ध्वनित करते हैं। क्या आप भगवान से डरते है? नहीं ना? क्यों? क्योंकि भगवान तो कड़-कड़ में विद्यमान हैं। इतना ही नहीं हम स्वयं भगवान का ही रूप हैं। भगवान कोई हमसे पृथक नहीं जो हम उनसे डरें। तो फिर अपने आप को "God fearing" अर्थात भगवान से डरने वाला मत कहीये। ध्यान रहे, विश्व मे केवल उनका सम्मान होता है जो स्वयं का सम्मान करते है।" - अगर आप हिंदू हैं तो जरूर जानें ये 11 बातें http://tz.ucweb.com/4_fCZI

भजन

पपीते की खेती

पपीते की खेती CONTENTS परिचय भूमिका पपीते की किस्में पपीते का फूल पपीते का पेड़ पपीते के लिए आबोहवा पपीता की खेती योग्य भूमि या मृदा पपीते की बोआई पपीते का रोपण प्लास्टिक थैलियों में बीज उगाना गड्ढे की तैयारी तथा पौधारोपण खाद व उर्वरक का प्रयोग पाले से पेड़ की रक्षा पपीते में कीट, बीमारी व उनकी रोकथाम पपीते के अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई खरपतवार नियंत्रण पपीते की उपज परिचय पपीते का फल थोड़ा लम्बा व गोलाकार होता है तथा गूदा पीले रंग का होता है। गूदे के बीच में काले रंग के बीज होते हैं। पेड़ के ऊपर के हिस्से में पत्तों के घेरे के नीचे पपीते के फल आते हैं ताकि यह पत्तों का घेरा कोमल फल की सुरक्षा कर सके। कच्चा पपीता हरे रंग का और पकने के बाद हरे पीले रंग का होता है। आजकल नयी जातियों में बिना बीज के पपीते की किस्में ईजाद की गई हैं। एक पपीते का वजन 300, 400 ग्राम से लेकर 1 किलो ग्राम तक हो सकता है। पपीते के पेड़ नर और मादा के रुप में अलग-अलग होते हैं लेकिन कभी-कभी एक ही पेड़ में दोनों तरह के फूल खिलते हैं। हवाईयन और मेक्सिकन पपीते बहुत प्रसिद्ध हैं। भारतीय पपीते भी अत्यन्त स्वादिष्ट होते हैं। अलग-अलग किस्मों के अनुसार इनके स्वाद में थोड़ी बहुत भिन्नता हो सकती है। भूमिका पपीता स्वास्थ्यवर्द्धक तथा विटामिन ए से भरपूर फल होता है। पपीता ट्रापिकल अमेरिका में पाया जाता है। पपीते का वानस्पतिक नाम केरिका पपाया है। पपीता कैरिकेसी परिवार का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य है। पपीता एक बहुलिडीस पौधा है तथा मुरकरटय से तीन प्रकार के लिंग नर, मादा तथा नर व मादा दोनों लिंग एक पेड़ पर होते हैं। पपीता के पके व कच्चे फल दोनो उपयोगी होते हैं। कच्चे फल से पपेन बनाया जाता है। जिसका सौन्दर्य जगत में तथा उद्योग जगत में व्यापक प्रयोग किया जाता है। पपीता एक सदाबहार मधुर फल है, जो स्वादिष्ट और रुचिकर होता है। यह हमारे देश में सभी जगह उत्पन्न होता है। यह बारहों महीने होता है, लेकिन यह फ़रवरी-मार्च और मई से अक्टूबर के मध्य विशेष रूप से पैदा होता है। इसका कच्चा फल हरा और पकने पर पीले रंग का हो जाता है। पका पपीता मधुर, भारी, गर्म, स्निग्ध और सारक होता है। पपीता पित्त का शमन तथा भोजन के प्रति रुचि उत्पन्न करता है। पपीता बहुत ही जल्दी बढ़ने वाला पेड़ है। साधारण ज़मीन, थोड़ी गरमी और अच्छी धूप मिले तो यह पेड़ अच्छा पनपता है, पर इसे अधिक पानी या ज़मीन में क्षार की ज़्यादा मात्रा रास नहीं आती। इसकी पूरी ऊँचाई क़रीब 10-12 फुट तक होती है। जैसे-जैसे पेड़ बढ़ता है, नीचे से एक एक पत्ता गिरता रहता है और अपना निशान तने पर छोड़ जाता है। तना एकदम सीधा हरे या भूरे रंग का और अन्दर से खोखला होता है। पत्ते पेड़ के सबसे ऊपरी हिस्से में ही होते हैं। एक समय में एक पेड़ पर 80 से 100 फल तक भी लग जाते हैं। पपीता पोषक तत्वों से भरपूर अत्यंत स्वास्थ्यवर्द्धक जल्दी तैयार होने वाला फल है । जिसे पके तथा कच्चे रूप में प्रयोग किया जाता है । आर्थिक महत्व ताजे फलों के अतिरिक्त पपेन के कारण भी है । जिसका प्रयोग बहुत से औद्योगिक कामों में होता है । अतः इसकी खेती की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है और क्षेत्रफल की दृष्टि से यह हमारे देश का पांचवा लोकप्रिय फल है, देश की अधिकांश भागों में घर की बगिया से लेकर बागों तक इसकी बागवानी का क्षेत्र निरंतर बढ़ता जा रहा है । देश की विभिन्न राज्यों आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तरांचल और मिजोरम में इसकी खेती की जा रही है।अतः इसके सफल उत्पादन के लिए वैज्ञानिक पद्धति और तकनीकों का उपयोग करके कृषक स्वयं और राष्ट्र को आर्थिक दृष्टि से लाभान्वित कर सकते हैं। इसके लिए तकनीकी बातों का ध्यान रखना चाहिए । पपीते की किस्में पपीते की मुख्य किस्मों का विवरण निम्नवत है- पूसा डोलसियरा यह अधिक ऊपज देने वाली पपीते की गाइनोडाइसियश प्रजाति है। जिसमें मादा तथा नर-मादा दो प्रकार के फूल एक ही पौधे पर आते हैं पके फल का स्वाद मीठा तथा आकर्षक सुगंध लिये होता है। पूसा मेजेस्टी यह भी एक गाइनोडाइसियश प्रजाति है। इसकी उत्पादकता अधिक है, तथा भंडारण क्षमता भी अधिक होती है। 'रेड लेडी 786' पपीते की एक नई किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना द्वारा विकसित की गई है, जिसे 'रेड लेडी 786' नाम दिया है। यह एक संकर किस्म है। इस किस्म की खासीयत यह है कि नर व मादा फूल ही पौधे पर होते हैं, लिहाजा हर पौधे से फल मिलने की गारंटी होती है। पपीते की अन्य किस्मों में नर व मादा फूल अलग-अलग पौधे पर लगते हैं, ऐसे में फूल निकलने तक यह पहचानना कठिन होता है कि कौन सा पौध नर है और कौन सा मादा। इस नई किस्म की एक खासीयत यह है कि इसमें साधरण पपीते में लगने वाली 'पपायरिक स्काट वायरस' नहीं लगता है। यह किस्म सिर्फ 9 महीने में तैयार हो जाती है। इस किस्म के फलों की भंडारण क्षमता भी ज्यादा होती है। पपीते में एंटी आक्सीडेंट पोषक तत्त्व कैरोटिन,पोटैशियम,मैग्नीशियम, रेशा और विटामिन ए, बी, सी सहित कई अन्य गुणकारी तत्व भी पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तकरीबन 3 सालों की खोज के बाद इसे पंजाब में उगाने के लिए किसानों को दिया। वैसे इसे हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और राजस्थान में भी उगाया जा रहा है। पपीते का फूल पूसा जाइन्ट यह किस्म बहुत अधिक वृद्धि वाली मानी जाती है। नर तथा मादा फूल अलग-अलग पौधे पर पाये जाते हैं। पौधे अधिक मज़बूत तथा तेज़ हवा से गिरते नहीं हैं।। पूसा ड्रवार्फ यह छोटी बढ़वार वाली डादसियश किस्म कही जाती है।जिसमें नर तथा मादा फूल अलग अलग पौधे पर आते हैं। फल मध्यम तथा ओवल आकार के होते हैं। पूसा नन्हा इस प्रजाति के पौधे बहुत छोटे होते हैं। तथा यह गृहवाटिका के लिए अधिक उपयोगी होता है। साथ साथ सफल बागवानी के लिए भी उपयुक्त है। कोयम्बर-1 पौधा छोटा तथा डाइसियरा होता है। फल मध्य आकार के तथा गोलाकार होते हैं। कोयम्बर-3 यह एक गाइनोडाइसियश प्रजाति है। पौधा लम्बा, मज़बूत तथा मध्य आकार का फल देने वाला होता है। पके फल में शर्करा की मात्रा अधिक होती है। तथा गूदा लाल रंग का होता है। हनीइयू (मधु बिन्दु) इस पौधे में नर पौधों की संख्या कम होती है,तथा बीज के प्रकरण अधिक लाभदायक होते हैं। इसका फल मध्यम आकार का बहुत मीठा तथा ख़ुशबू वाला होता है। पपीते का पेड़ कूर्गहनि डयू यह गाइनोडाइसियश जाति है। इसमें नर पौधे नहीं होते हैं। फल का आकार मध्यम तथा लम्बवत गोलाकार होता है। गूदे का रंग नारंगी पीला होता है। वाशिगंटन यह अधिक उपज देने वाली विभिन्न जलवायु में उगाई जाने वाली प्रजाति है। इस पौधे की पत्तियों के डंठल बैगनी रंग के होते हैं। जो इस किस्म की पहचान कराते हैं। यह डाइसियन किस्म हैं फल मीठा,गूदा पीला तथा अच्छी सुगंध वाला होता है। पन्त पपीता-1 इस किस्म का पौधा छोटा तथा डाइसियरा होता है। फल मध्यम आकार के गोल होते हैं। फल मीठा तथा सुगंधित तथा पीला गूदा होता है। यह पककर खाने वाली अच्छी किस्म है तथा तराई एवं भावर जैसे क्षेत्र में उगाने के लिए अधिक उपयोगी है। पपीते के लिए आबोहवा पपीता एक उष्ण कटिबंधीय फल है,परंतु इसकी खेती समशीतोष्ण आबोहवा में भी की जा सकती है। ज्यादा ठंड से पौधे के विकास पर खराब असर पड़ता है। इसके फलों की बढ़वार रूक जाती है। फलों के पकने व मिठास बढ़ने के लिए गरम मौसम बेहतर है। पपीता की खेती योग्य भूमि या मृदा इस पपीते के सफल उत्पादन के लिए दोमट मिट्‌टी अच्छी होती है। खेत में पानी निकलने का सही इंतजाम होना जरूरी है, क्योंकि पपीते के पौधे की जड़ों व तने के पास पानी भरा रहने से पौधे का तना सड़ने लगता है। इस पपीते के लिहाज से मिट्‌टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए। पपीता के लिए हलकी दोमट या दोमट मृदा जिसमें जलनिकास अच्छा हो सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए इसके लिए दोमट, हवादार, काली उपजाऊ भूमि का चयन करना चाहिए और इसका अम्ल्तांक 6.5-7.5 के बीच होना चाहिए तथा पानी बिलकुल नहीं रुकना चाहिए। मध्य काली और जलोढ़ भूमि इसके लिए भी अच्छी होती है । यह मुख्य रूप से उष्ण प्रदेशीय फल है इसके उत्पादन के लिए तापक्रम 22-26 डिग्री से०ग्रे० के बीच और 10 डिग्री से०ग्रे० से कम नहीं होना चाहिए क्योंकि अधिक ठंड तथा पाला इसके शत्रु हैं, जिससे पौधे और फल दोनों ही प्रभावित होते हैं। इसके सकल उत्पादन के लिए तुलनात्मक उच्च तापक्रम, कम आर्द्रता और पर्याप्त नमी की जरुरत है। पपीता में नियंत्रित परगन के अभाव और बीज प्रवर्धन के कारण क़िस्में अस्थाई हैं और एक ही क़िस्म में विभिन्नता पाई जाती है। अतः फूल आने से पहले नर और मादा पौधों का अनुमान लगाना कठिन है। इनमें कुछ प्रचलित क़िस्में जो देश के विभिन्न भागों में उगाई जाती हैं और अधिक संख्या में मादा फूलों के पौधे मिलते हैं मुख्य हैं। हनीडियू या मधु बिंदु, कुर्ग हनीडियू, वाशिंगटन, कोय -1, कोय- 2, कोय- 3, फल उत्पादन और पपेय उत्पादन के लिए कोय-5, कोय-6, एम. ऍफ़.-1 और पूसा मेजस्टी मुख्या हैं। उत्तरी भारत में तापक्रम का उतर चढ़ाव अधिक होता है। अतः उभयलिंगी फूल वाली क़िस्में ठीक उत्पादन नहीं दे पाती हैं। कोय-1, पंजाब स्वीट, पूसा देलिसियास, पूसा मेजस्टी, पूसा जाइंट, पूसा ड्वार्फ, पूसा नन्हा (म्यूटेंट) आदि क़िस्में जिनमे मादा फूलों की संख्या अधिक होती है और उभयलिंगी हैं, उत्तरी भारत में काफी सफल हैं। हवाई की 'सोलो' क़िस्म जो उभयलिंगी और मादा पौधे होते है, उत्तरी भारत में इसके फल छोटे और निम्न कोटि के होते हैं। पपीते की बोआई पपीते का व्यवसाय उत्पादन बीजों द्वारा किया जाता है। इसके सफल उत्पादन के लिए यह जरूरी है कि बीज अच्छी क्वालिटी का हो। बीज के मामले में निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए : 1. बीज बोने का समय जुलाई से सितम्बर और फरवरी-मार्च होता है। 2. बीज अच्छी किस्म के अच्छे व स्वस्थ फलों से लेने चाहिए। चूंकि यह नई किस्म संकर प्रजाति की है, लिहाजा हर बार इसका नया बीज ही बोना चाहिए। 3. बीजों को क्यारियों, लकड़ी के बक्सों, मिट्‌टी के गमलों व पोलीथीन की थैलियों में बोया जा सकता है। 4. क्यारियाँ जमीन की सतह से 15 सेंटीमीटर ऊंची व 1 मीटर चौड़ी होनी चाहिए। 5. क्यारियों में गोबर की खाद, कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट काफी मात्रा में मिलाना चाहिए। पौधे को पद विगलन रोग से बचाने के लिए क्यारियों को फार्मलीन के 1:40 के घोल से उपचारित कर लेना चाहिए और बीजों को 0.1 फीसदी कॉपर आक्सीक्लोराइड के घोल से उपचारित करके बोना चाहिए। 6. जब पौधे 8-10 सेंटीमीटर लंबे हो जाएँ, तो उन्हें क्यारी से पौलीथीन में स्थानांतरित कर देते हैं। 7. जब पौधे 15 सेंटीमीटर ऊँचे हो जाएँ, तब 0.3 फीसदी फफूंदीनाशक घोल का छिड़काव कर देना चाहिए। पपीते के उत्पादन के लिए नर्सरी में पौधों का उगाना बहुत महत्व रखता है। इसके लिए बीज की मात्रा एक हेक्टेयर के लिए 500 ग्राम पर्याप्त होती है। बीज पूर्ण पका हुआ, अच्छी तरह सूखा हुआ और शीशे की जार या बोतल में रखा हो जिसका मुँह ढका हो और 6 महीने से पुराना न हो, उपयुक्त है। बोने से पहले बीज को 3 ग्राम केप्टान से एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए। बीज बोने के लिए क्यारी जो जमीन से ऊँची उठी हुई संकरी होनी चाहिए इसके अलावा बड़े गमले या लकड़ी के बक्सों का भी प्रयोग कर सकते हैं। इन्हें तैयार करने के लिए पत्ती की खाद, बालू, तथा सदी हुई गोबर की खाद को बराबर मात्र में मिलाकर मिश्रण तैयार कर लेते हैं। जिस स्थान पर नर्सरी हो उस स्थान की अच्छी जुताई, गुड़ाई,करके समस्त कंकड़-पत्थर और खरपतवार निकाल कर साफ़ कर देना चाहिए तथा ज़मीन को 2 प्रतिशत फोरमिलिन से उपचारित कर लेना चाहिए। वह स्थान जहाँ तेज़ धूप तथा अधिक छाया न आये चुनना चाहिए। एक एकड़ के लिए 4059 मीटर ज़मीन में उगाये गए पौधे काफी होते हैं। इसमें 2.5 x 10 x 0.5 आकर की क्यारी बनाकर उपरोक्त मिश्रण अच्छी तरह मिला दें, और क्यारी को ऊपर से समतल कर दें। इसके बाद मिश्रण की तह लगाकर 1/2' गहराई पर 3' x 6' के फासले पर पंक्ति बनाकर उपचारित बीज बो दे और फिर 1/2' गोबर की खाद के मिश्रण से ढ़क कर लकड़ी से दबा दें ताकि बीज ऊपर न रह जाये। यदि गमलों या बक्सों का उगाने के लिए प्रयोग करें तो इनमे भी इसी मिश्रण का प्रयोग करें। बोई गयी क्यारियों को सूखी घास या पुआल से ढक दें और सुबह शाम होज द्वारा पानी दें। बोने के लगभग 15-20 दिन भीतर बीज जम जाते हैं। जब इन पौधों में 4-5 पत्तियाँ और ऊँचाई 25 से.मी. हो जाये तो दो महीने बाद खेत में प्रतिरोपण करना चाहिए, प्रतिरोपण से पहले गमलों को धूप में रखना चाहिए, ज्यादा सिंचाई करने से सड़न और उकठा रोग लग जाता है। उत्तरी भारत में नर्सरी में बीज मार्च-अप्रैल,जून-अगस्त में उगाने चाहिए। पपीते का रोपण अच्छी तरह से तैयार खेत में 2 x2 मीटर की दूरी पर 50x50x50 सेंटीमीटर आकार के गड्‌ढे मई के महीने में खोद कर 15 दिनों के लिए खुले छोड़ देने चाहिएं, ताकि गड्‌ढों को अच्छी तरह धूप लग जाए और हानिकारक कीड़े-मकोड़े, रोगाणु वगैरह नष्ट हो जाएँ। पौधे लगाने के बाद गड्‌ढे को मिट्‌टी और गोबर की खाद 50 ग्राम एल्ड्रिन मिलाकर इस प्रकार भरना चाहिए कि वह जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊँचा रहे। गड्‌ढे की भराई के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए, जिससे मिट्‌टी अच्छी तरह बैठ जाए। वैसे पपीते के पौधे जून-जुलाई या फरवरी -मार्च में लगाए जाते हैं, पर ज्यादा बारिश व सर्दी वाले इलाकों में सितंबर या फरवरी -मार्च में लगाने चाहिए। जब तक पौधे अच्छी तरह पनप न जाएँ, तब तक रोजाना दोपहर बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। प्लास्टिक थैलियों में बीज उगाना इसके लिए 200 गेज और 20 x 15 सेमी आकर की थैलियों की जरुरत होती है । जिनको किसी कील से नीचे और साइड में छेड़ कर देते हैं तथा 1:1:1:1 पत्ती की खाद, रेट, गोबर और मिट्टी का मिश्रण बनाकर थैलियों में भर देते हैं । प्रत्येक थैली में दो या तीन बीज बो देते हैं। उचित ऊँचाई होने पर पौधों को खेत में प्रतिरोपण कर देते हैं । प्रतिरोपण करते समय थाली के नीचे का भाग फाड़ देना चाहिए। गड्ढे की तैयारी तथा पौधारोपण पौध लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह तैयारी करके खेत को समतल कर लेना चाहिए ताकि पानी न भर सकें। फिर पपीता के लिए 50x50x50 से०मी० आकार के गड्ढे 1.5x1.5 मीटर के फासले पर खोद लेने चाहिए और प्रत्येक गड्ढे में 30 ग्राम बी.एच.सी. 10 प्रतिशत डस्ट मिलकर उपचारित कर लेना चाहिए। ऊँची बढ़ने वाली क़िस्मों के लिए1.8x1.8 मीटर फासला रखते हैं। पौधे 20-25 से०मी० के फासले पर लगा देते हैं। पौधे लगते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि गड्ढे को ढक देना चाहिए जिससे पानी तने से न लगे। खाद व उर्वरक का प्रयोग पपीता जल्दी फल देना शुरू कर देता है। इसलिए इसे अधिक उपजाऊ भूमि की जरुरत है। अतः अच्छी फ़सल लेने के लिए 200 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फ़ॉस्फ़रस एवं 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त प्रति वर्ष प्रति पौधे 20-25 कि०ग्रा० गोबर की सड़ी खाद, एक कि०ग्रा० बोनमील और एक कि०ग्रा० नीम की खली की जरुरत पड़ती है। खाद की यह मात्र तीन बार बराबर मात्रा में मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और अक्तूबर महीनों में देनी चाहिए। पपीता जल्दी बढ़ने व फल देने वाला पौधा है, जिसके कारण भूमि से काफी मात्रा में पोषक तत्व निकल जाते हैं। लिहाजा अच्छी उपज हासिल करने के लिए 250 ग्राम नाइट्रोजन, 150 ग्राम फास्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधे हर साल देना चाहिए। नाइट्रोजन की मात्रा को 6 भागों में बाँट कर पौधा रोपण के 2 महीने बाद से हर दूसरे महीने डालना चाहिए। फास्फोरस व पोटाश की आधी-आधी मात्रा 2 बार में देनी चाहिए। उर्वरकों को तने से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधें के चारों ओर बिखेर कर मिट्‌टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। फास्फोरस व पोटाश की आधी मात्रा फरवरी-मार्च और आधी जुलाई-अगस्त में देनी चाहिए। उर्वरक देने के बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। पाले से पेड़ की रक्षा पौधे को पाले से बचाना बहुत आवश्यक है। इसके लिए नवम्बर के अंत में तीन तरफ से फूंस से अच्छी प्रकार ढक दें एवं पूर्व-दक्षिण दिशा में खुला छोड़ दें। बाग़ के चारों तरफ रामाशन से हेज लगा दें जिससे तेज़ गर्म और ठंडी हवा से बचाव हो जाता है। समय-समय पर धुआँ कर देना चाहिए। उष्ण प्रदेशीय जलवायु में जाड़े और गर्मी के तापमान में अधिक अंतर नहीं होता है और आर्द्रता भी साल भर रहती है। पपीता साल भर फलता फूलता है। लेकिन उत्तर भारत में यदि खेत में प्रतिरोपण अप्रैल-जुलाई तक किया जाय तो अगली बसंत ऋतू तक पौधे फूलने लगते हैं और मार्च-अप्रैल या बाद में लगे फल दिसम्बर-जनवरी में पकने लगते हैं। यदि फल तोड़ने पर दूध, पानी से तरह निकलने लगता है तब पपीता तोड़ने योग्य हो जाता है। अच्छी देख-रेख करने पर प्रति पौधे से 40-50 किलो उपज मिल जाती है। पपीते में कीट, बीमारी व उनकी रोकथाम प्रमुख रूप से किसी कीड़े से नुकसान नहीं होता है परन्तु वायरस, रोग फैलाने में सहायक होते हैं। इसमें निम्न रोग लगते हैं- तने तथा जड़ के गलने से बीमारी इसमें भूमि के तल के पास तने का ऊपरी छिलका पीला होकर गलने लगता है और जड़ भी गलने लगती है। पत्तियाँ सुख जाती हैं और पौधा मर जाता है। इसके उपचार के लिए जल निकास में सुधार और ग्रसित पौधों को तुंरत उखाड़कर फेंक देना चाहिए। पौधों पर एक प्रतिशत वोरडोक्स मिश्रण या कोंपर आक्सीक्लोराइड को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करने से काफ़ी रोकथाम होती है। डेम्पिग ओंफ इसमें नर्सरी में ही छोटे पौधे नीचे से गलकर मर जाते हैं। इससे बचने के लिए बीज बोने से पहले सेरेसान एग्रोसन जी.एन. से उपचारित करना चाहिए तथा सीड बेड को 2.5 % फार्मेल्डिहाइड घोल से उपचारित करना चाहिए। मौजेक (पत्तियों का मुड़ना) : इससे प्रभावित पत्तियों का रंग पीला हो जाता है व डंठल छोटा और आकर में सिकुड़ जाता है। इसके लिए 250 मि. ली. मैलाथियान 50 ई०सी० 250 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करना काफ़ी फायदेमंद होता है। चैंपा : इस कीट के बच्चे व जवान दोनों पौधे के तमाम हिस्सों का रस चूसते हैं और विषाणु रोग फैलाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए डायमेथोएट 30 ईसी 1.5 मिलीलीटर या पफास्पफोमिडाल 5 मिलीलीटर को 1 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। लाल मकड़ी : इस कीट का हमला पत्तियों व फलों की सतहों पर होता है। इसके प्रकोप के कारण पत्तियाँ पीली पड़ जाती है और बाद में लाल भूरे रंग की हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए थायमेथोएट 30 ईसी 1.5 मिलीलीटर को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। पद विगलन : यह रोग पीथियम फ्रयूजेरियम नामक पफपफूंदी के कारण होता है। रोगी पौधें की बढ़वार रूक जाती है। पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और पौध सड़कर गिर जाता है। इसकी रोकथाम के लिए रोग वाले हिस्से को खुरचकर उस पर ब्रासीकोल 2 ग्राम को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। श्याम वर्ण: इस रोग का असर पत्तियों व फलों पर होता है, जिससे इनकी वृद्धि रूक जाती है। इससे फलों के ऊपर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए ब्लाईटाक्स 3 ग्राम को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। पपीते के अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई पानी की कमी तथा निराई-गुड़ाई न होने से पपीते के उत्पादन पर बहुत बुरा असर पड़ता है। अतः दक्षिण भारत की जलवायु में जाड़े में 8-10 दिन तथा गर्मी में 6 दिन के अंतर पर पानी देना चाहिए। उत्तर भारत में अप्रैल से जून तक सप्ताह में दो बार तथा जाड़े में 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि पानी तने को छूने न पाए अन्यथा पौधे में गलने की बीमारी लगने का अंदेशा रहेगा इसलिए तने के आस-पास मिट्टी ऊँची रखनी चाहिए। पपीता का बाग़ साफ़ सुथरा रहे इसके लिए प्रत्येक सिंचाई के बाद पेड़ों के चारो तरफ हल्की गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए। पपीते के अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई का सही इंतजाम बेहद जरूरी है। गर्मियों में 6-7 दिनों के अंदर पर और सर्दियों में 10-12 दिनों के अंदर सिंचाई करनी चाहिए। बारिश के मौसम में जब लंबे समय तक बरसात न हो, तो सिंचाई की जरूरत पड़ती है। पानी को तने के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिए। इसके लिए तने के पास चारों ओर मिट्‌टी चढ़ा देनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण पपीते के बगीचे में तमाम खरपतवार उग आते हैं, जो जमीन से नमी, पोषक तत्त्वों, वायु व प्रकाश वगैरह के लिए पपीते के पौधे से मुकाबला करते हैं, जिससे पौधे की बढ़वार व उत्पादन पर उल्टा असर पड़ता है। खरपतवारों से बचाव के लिए जरूरत के मुताबिक निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। बराबर सिंचाई करते रहने से मिट्‌टी की सतह काफी कठोर हो जाती है, जिससे पौधे की बढ़वार पर उल्टा असर पड़ता है। लिहाजा 2-3 बार सिंचाई के बाद थालों की हल्की निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए। पपीते की उपज आमतौर पर पपीते की उन्नत किस्मों से प्रति पौध 35-50 किलोग्राम उपज मिल जाती है, जबकि इस नई किस्म से 2-3 गुणा ज्यादा उपज मिल जाती है।

सिलाई योजना

मुख्य सामग्री पर जाएं मुख्य पृष्ठ अधिसूचनाऍआवेदन प्रपत्र प्रगति विवरणयोजनाऍलाभूक सूचीसम्पर्क मुख्य बिंदु श्रमिकों के लिए अधिनियम बोर्ड का गठनभवन एवं अन्य सन्निर्माण कार्यनिर्माण श्रमिकनिर्माण श्रमिकों का वर्गीकरण वेब इनफोर्मेसन लीडर श्रीमती अल्पना सिन्हा, सहायक श्रम आयुक्त ईमेल:bocjhr@gmail.com दूरभाष : 0651-2480049 फैक्स : 0651-2480049 योजनाएं : सिलाई मशीन सहायता योजना योजनाएं : सिलाई मशीन सहायता योजना I. योजना के प्रावधान: 1. इसके अंततर्गत बोर्ड के निबंधित महिला लाभुकों को बोर्ड के द्वारा उचित प्रषिक्षण के उपरांत उचित गुणवता की सिलाई मशीन दी जाएगी। II. योजना की पात्रता: 1. निबंधित महिला श्रमिकों के लिए। 2. उम्र ३५-६० वर्ष के आयु के मध्य हो। III. योजना हेतु आवेदन की प्रक्रिया: 1. आवेदक के द्वारा हस्ताक्षरयुक्त आवेदन संबंधित क्षेत्राधिकारिता के श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी/श्रम अधीक्षक के कार्यालय में आवेदन जमा किया जायेगा। 2. आवेदन में निबंधन क्रमांक अंकित किया जाना आवशयक है। 3. सिलाई मशीन सहायता योजना व साईकिल सहायता योजना में से लाभुक एक ही योजना का लाभ ले सकता है। IV. स्वीकृति का अधिकार: पात्रता जाँच के उपरांत स्थानीय श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी/श्रम अधीक्षक के द्वारा प्राप्त आवेदन को निबंधन पदाधिकारी के माध्यम से आवेदन उप श्रमायुक्त को पन्द्रह दिनों के भीतर अग्रसारित किया जायेगा। उप श्रमायुक्त एक सप्ताह के भीतर स्वीकृति की प्रकिया पूर्ण कर योजना का लाभ लाभुकों को दिलायेंगे। V. अन्यान्य: इस योजना के संबंध में कोई विसंगति होने पर बोर्ड का निर्णय अंतिम होगा। VI. योजनान्तर्गत जिलावार प्रगति विवरण: इस योजना के अंतर्गत राँची जिले में १७ निबंधित महिला लाभुकों के मध्य सिलाई मशीन का वितरण किया गया है एवं इस मद में ९९,४५० रूपये का व्यय किया गया है। जमशेदपुर जिले में ५७ सिलाई मशीन का वितरण निबंधिक महिला लाभुकों के मध्य किया गया है व इस मद में अब तक कुल ७४ लाभुकों के मध्य सिलाई मशीन का वितरण किया जा चुका है एवं इस योजना मद में कुल ४,३२,९०० रूपये व्यय किया जा चुका है। शेष जिलों में भी निबंधित लाभुकों को योजना से आच्छादित किये जाने संबंधित कार्रवाई चल रही है। अभिगम्यता वक्तव्य हाइपरलिंकिंग निति प्रत्याख्यान हमसे संपर्क करें

सिलाई कैसे

कपड़ा, चमड़ा, फर, बार्क या किसी अन्य लचीली वस्तु (flexible material) को आपस में सूई एवं धागों की सहायता बांधना सिलाई (Sewing or stitching) कहलाती है। घरेलू सिलाई संपादित करें घरेलू सिलाई अधिकतर मरम्मत, रफू, कपड़ों का ठीक करना तथा बच्चों के कपड़ों से संबंधित होती है। इसके लिये उचित साधन, उचित कपड़े और उचित तरीके का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है। उचित साधन संपादित करें सिलाई के आवश्यक साधनों में सर्वप्रथम सूई का स्थान आता है। सूइयाँ कई प्रकार की होती हैं, कुछ मोटी, कुछ बारीक, इनकों नंबरों द्वारा विभाजित किया गया है। जितने अधिक नंबर की सूई होगी उतनी ही बारीक होगी। मोटे कपड़े के लिये मोटी सूई का प्रयोग होता है और बारीक कपड़े के लिये पतली सूई का। मोटे कपड़े को बारीक सूई से सीने से सूई टूटने का डर रहता है तथा मोटी सूई से बारीक कपड़े को सीने से कपड़े में मोटे मोटे छेद हो जाते हैं, जो बड़े भद्दे लगते हैं। अधिकतर पाँच नंबर से आठ नंबर तक की सूई का प्रयोग होता है। साधन में दूसरा स्थान धागे का है। धागा कपड़े के रंग से मिलता हुआ होना चाहिए तथा कपड़े के हिसाब से ही मोटा या बारीक भी होना चाहिए। वैसे अधिकतर सिलाई के लिये ४० और ५० नंबर के धागे का ही प्रयोग किया जाता है। तीसरा स्थान कैंची का है। कैंची न तो बहुत छोटी हो और न बड़ी। उसकी धार तेज होनी चाहिए, जिससे कपड़ा सफाई से कट सके। चौथा स्थान इंची टेप का होता है, जो कपड़ा नापने के काम में आता है; फिर निशान लगाने के रंग या रंगीन पेंसिलों का प्रयोग होता है। सीधी लाइनों के लिये यदि स्केल भी पास हो तो बहुत अच्छा होता है। सिलाई के लिये अब अधिकतर मशीन का प्रयोग होता है। इससे सिलाई बहुत शीघ्र हो जाती है। सिलाई के लिये अंगुस्ताने की भी आवश्यकता होती है। इससे उंगलियों में सूई नहीं चुभने पाती। सिलाई का ढंग संपादित करें सिलाई करते समय हाथ से कपड़े को ठीक पकड़ना तथा सूई को ठीक स्थान पर रखना अत्यंत आवश्यक है। सिलाई करते समय आप दाहिने हाथ से बाएँ हाथ की ओर चलते हैं। कसीदे में इसके विपरीत बाएँ हाथ से दाएँ की ओर जाया जाता है। सिलाई की तुरपन तीन प्रकार की होती है : धागा भरना, तुरपन और बाखिया करना। धागा भरना (Running Stitch) संपादित करें इसमें कपड़े को ठीक से पकड़ना अत्यंत आवश्यक है। यदि कपड़ा ठीक नहीं पकड़ा गया तो धागा भरने में काफी समय लग जाता है। आप दोनों हाथों में कपड़ा पकड़ दाएँ हाथ के अँगूठे और प्रथम उँगली के बीच सूई रख, दाएँ से बाई ओर चलते हैं। यह कपड़ों को जोड़ने के काम में लाया जाता है। तुरपन (Hemming Stitch) संपादित करें यह किनारे या सिलाई को मोड़कर सीने के काम आती है। बखिया (Back Stitch) संपादित करें यह भी दो कपड़ों को जोड़ने के काम में लाया जाता है। पर यह तुरपन धागा भरने से अधिक मजबूत होती है। इसका उधेड़ना अत्यंत कठिन होता है। इस तुरपन में पहले सूई को पिछले छेद में डालकर दो स्थान आगे निकाला जाता है और इस प्रकार बखिया आगे बढ़ता जाता है। सिलाई के प्रकार संपादित करें सिलाई के उपरोक्त तीन प्रकार होते हैं। इनके अतिरिक्त गोट लगाना, दो कपड़ों को जोड़ने के विभिन्न तरीके, रफू करना, काज बनाना एवं बटन टाँकना घरेलू सिलाई के अंतर्गत आते हैं। गोट लगाना (Piping) संपादित करें गोट लगाने के लिये कपड़े को तिरछा काटना अत्यंत आवश्यक है। गोट दो प्रकार से लगती है। एक तो दो कपड़ों के बीच से बाहर निकलती है। दूसरी एक कपड़े के किनारे पर उसको सुदंर बनाने के लिय लगती है। प्रथम प्रकार की अधिकतर रजाइयों इत्यादि में यहाँ जहाँ दोहरा कपड़ा हो वहीं, लग सकती है। गोट को दोहरा मोड़कर दो कपड़ों के बीच रखकर सी दिया जाता है। दूसरे प्रकार की गोट लगने के लिये पहले कपड़े पर गोट धागा भरकर टाँक दी जाती है। इसमें गोट को खींचकर तथा कपड़े को ढीला लेना होता है। फिर दूसरी ओर मोड़कर तुरपन कर दी जाती है। दो कपड़ों को जोड़ने के लिये विभिन्न प्रकार की सिलाइयों का प्रयोग होता है। (क) सीधी सिलाई - इनमें दो कपड़ों को एक दूसरे पर रख किनारे पर १/४ से १ इंच दूर तक सीधा धागा भर दिया जाता है, या बखिया लगा दी जाती है। (ख) चौरस सिलाई (Flat Fell Seam) - इसमें एक कपड़े को ज्यादा तथा दूसरे को उसने थोड़ा कम आगे निकाल कर धागा भर दिया जाता है। फिर इस सिलाई को मोड़ उसपर तुरप दिया जाता है। (ग) दोहरी चौरस सिलाई (Stitehed Fell Seam) - इसमें चित्र की भाँति दो कपड़ों के किनारों को दूसरे के ऊपर रख दोनों ओर से तुरपन कर दी जाती है। (घ) उलटकर सिलाई (French Seam) इसमें दो कपड़ों को मिलाकर बिलकुल किनारे पर धागा भर देते हैं और फिर उन्हें उलटकर एक और धागा भर देते हैं। इससे कपड़े के फुचड़े सब सिलाई के अंदर हो जाते हैं और सिलाई पीछे की ओर से भी अत्यंत साफ आती है। रफू करना (Mending) संपादित करें रफू के लिये जहां तक संभव हो धागा उसी कपड़े में से निकालना चाहिए तथा कपड़े के धागों के रुख के अनुसार सूई को चलाना चाहिए, जैसा चित्र ९ में दिखाया है। इस प्रकार सीधे फटे में सीधी सीधी सिलाई की जाती है, पर यदि कपड़ा तिरछा फटा हो तो आड़ा सीधा दोनों और सीना होता है। पैवंद लगाना (Patching) संपादित करें जहाँ पर आपको पैवंद लगाना हो वहाँ फटे स्थान से बड़ा एक अन्य चौकोर कपड़ा काटकर उसको फटे स्थान पर तुरपन से टाँक दीजिए। इसके पश्चात्‌ उलटकर फटे स्थान को चौकोर काटकर किनारे मोड़कर तुरपन कर दीजिए। काज (Button-hole) बनाना संपादित करें आवश्यकता के अनुसार काज काटकर, काज के दोनों ओर धागा भरकर काज की तुरपन से उसे चित्र ११. की भांति जींद देते हैं। बटन का जोर जिस ओर पड़ता है उसके दूसरी ओर से काज प्रारंभ कर पुन: वहीं सिलाई समाप्त की जाति है। इस प्रकार यदि खड़ा काज है तो आरंभ नीचे किया जाता है, पर पड़े काज को किनारे के दूसरी ओर से आरंभ करते हैं। बटन टाँकना संपादित करें बटन में सदैव दो या अधिक छेद बने होते हैं। उन छेदों में से सूई निकालनकर बटन को कपड़े पर सी देते हैं। सिलाई की जरूरत वाले व्यवसाय सिलाई के औजार (Sewing tools and accessories) संपादित करें Sewing box with sewing notions stitching awl bobbin bodkin dress form dressmaker's or tailor's shears measuring tape needle pattern pattern weights pin pincushion rotary cutter scissors seam ripper sewing table tailor's chalk thimble thread/yarn tracing paper tracing wheel wax, often beeswax sewing box सिलाई के सहवर्ती कार्य संपादित करें buckle button (buttons can be sew-through or have shanks.) toggle chinese frog eye hook hook-and-loop tape (often known by brand name Velcro) snap zipper ties सिलाई के साथ लगने वाले सामान (Finishing and embellishment) संपादित करें beaded fringe & trim elastic piping/cording/welting eyelet grommet heading interfacing rivet trims (fringe, beaded fringe, ribbons, lace, sequin tape) तरह-तरह की सीवन (List of stitches) संपादित करें The two main stitches that sewing machines make of which the others are derivatives are lockstitch and chain stitch. back tack backstitch - a sturdy hand stitch for seams and decoration basting stitch (or tacking) - for reinforcement blanket stitch blind stitch (or hem stitch) - a type of slip stitch used for inconspicuous hems buttonhole stitch chain stitch - hand or machine stitch for seams or decoration cross-stitch - usually used for decoration, but may also be used for seams darning stitch embroidery stitch hemming stitch lockstitch - machine stitch, also called straight stitch overhand stitch overlock pad stitch padding stitch running stitch - a hand stitch for seams and gathering sailmakers stitch slip stitch - a hand stitch for fastening two pieces of fabric together from the right side without the thread showing stretch stitch topstitch whipstitch (or oversewing or overcast stitch) - for protecting edges zig-zag stitch

उत्तर प्रदेश की कल्याण कारी योजना

उत्तर प्रदेश की कल्याणकारी योजना CONTENTS भूमिका समाज कल्याण विभाग की योजनायें समाजवादी पेंशन योजना शादी एवं बीमारी हेतु अनुदान राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना अनुसूचित जाति/जनजाति व पिछड़े वर्ग का कल्याण कार्यक्रम दशमोत्तर कक्षाओं की छात्रवृत्ति (अनुसूचित जाति एवं सामान्य वर्ग) अनुसूचित जाति / जनजाति के छात्रों को मेरिट उच्चीकृत किये जाने की केन्द्र पुरोनिधानित योजना प्राविधिक शिक्षा सम्बन्धी सुविधायें आई.ए.एस./ पी.सी.एस. तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु कोचिंग योजना आश्रम पद्धति से विद्यालय संचालन अनुसूचित जाति के छात्र/ छात्राओं हेतु छात्रावास संचालन भूमिका छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति योजना, अनुसूचित जातियों/जनजतियों के लिये बुक बैंक योजना, शुल्क प्रतिपूर्ति योजना, अनावर्ती सहायता योजना, प्राविधिक शिक्षा संबंधी सुविधायें, केन्द्रीय पुरोनिधानित योजना के अन्तर्गत अस्वच्छ पेंशा में लगे व्यक्तियों के विशेष छात्रवृत्ति योजना समाज कल्याण विभाग द्वारा अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के कल्याण सेक्टर के अन्तर्गत अनुसूचित जातियों/विमुक्त जातियों के कल्याण हेतु विभिन्न कल्याणकारी योजनायें चलायी जा रही है जिन्हें मुख्यत: शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक एवं अन्य योजनाओं के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया है। समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित योजनाओं में अनुसूचित जातियों/ जनजातियों एवं विमुक्त जातियों कीं छात्रवृत्ति योजना, सामान्य वर्ग के गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले, स्वैच्छिक संगठनों द्वारा शिक्षा संबंधी कार्य तथा उन्हें दी जाने वाली आर्थिक सहायता से संबंधित योजना, राजकीय उन्नयन बस्तियों के रख-रखाव से संबंधित योजना, अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम-१९८९ के क्रियान्वयन से संबंधित योजना, आश्रम पद्धति विद्यालयों एवं छात्रावासों का संचालन, अनुसूचित जाति के व्यक्तियों को शादी/बीमारी अनुदान दिये जाने की योजना सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के अन्तर्गत अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम द्वारा स्वत: रोजगार योजना, सेनिटरी मार्ट योजना, दुकान निर्माण योजना, कौशल वृद्ध प्रशिक्षण की योजना तथा निशुल्क बोरिंग की योजना संचालित की जा रही है। समाज कल्याण विभाग के द्वारा मंत्री विवेकाधीन कोष से अनुदान स्वीकृत किया जाता है। इसके अन्तर्गत रू० ३५,०००.०० की व्यवस्था की गयी है। इसके अतिरिक्त अशक्त एवं वृद्ध गृहों, राजकीय भिक्षुक गृहों का संचालन, राजकीय भिक्षुग गृहों का संचालन किया जा रहा है तथा अनुसूचित जातियों के कल्याणार्थ कार्य करने वाले विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के अन्तर्गत राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, राष्ट्रीय पारिवारिक योजना के अन्तर्गत लाभार्थियों को कुछ सुविधायें अनुमन्य की गयी है। समाज कल्याण विभाग की योजनायेंसमाजवादी पेंशन योजना भारत वर्ष में पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा एवं साक्षरता को समन्वित करते हुए समाज के निर्बल एवं गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना का संचालन वर्ष 2014-15 से किया जा रहा है। योजना के मुख्य आकर्षण न्यूनतम पेंशन रु. 500/- प्रतिमाह, शिक्षा, स्वास्थ्य परीक्षण से सम्बन्धित मानको के अनुपालन की दशा में पेंशन वृद्धि रू. 50/- प्रतिवर्ष एवं अधिकतम पेंशन सीमा रु. 750/- प्रतिमाह योजनान्तर्गत प्रदेश के 40 लाख लाभार्थियों को लाभान्वित किये जाने का लक्ष्य है, जिसमें अनुसूचित जाति / जनजाति के 12 लाख लाभार्थी, अल्पसंख्यक वर्ग के 10 लाख लाभार्थी तथा अन्य पिछड़ा वर्ग एवं सामान्य वर्ग के 18 लाख लाभार्थियों को लाभान्वित किया जायेगा। योग्यता यदि पूर्व से विधवा, विकलांग अथवा वृद्धावस्था पेंशन योजनान्तर्गत लाभान्वित हो रहा हो। प्रदेश शासन द्वारा संचालित योजनान्तर्गत बेरोजगारी भत्ता प्राप्त कर रहा हो। परिवार में 0.5 हेक्टेयर सिंचित अथवा 1.0 हेक्टेयर सिंचित एवं 2.0 हेक्टेयर असिंचित भूमि उपलब्ध हो। बुन्देलखण्ड क्षेत्र, मिर्जापुर एवं सोनभद्र में यह सीमा क्रमश: 1.0 हेक्टेयर सिंचित एवं 2.0 हेक्टेयर असिंचित भूमि होगी। परिवार में किसी भी प्रकार का मोटराइज्ड वाहन / मशीनीकृत कृषि उपकरण जैसे जीप, कार, थ्री-व्हीलर, स्कूटर, मोटर साइकिल, ट्रेक्टर, पावर टीलर, थ्रेशर या हारवेस्टर हो। कोई सदस्य सरकारी / गैर सरकारी / एन0जी0ओ0 / निजी संगठनों में नियमित वेतन भोगी कर्मचारी हो। कोई भी सदस्य आयकर दाता हो। कोई भी सदस्य शासकीय / अर्द्धशासकीय सेवाओं से सेवानिवृत्त हुए हों और जिन्हें पेंशन की सुविधा प्राप्त हो रही हो। शहरी क्षेत्र में परिवार के स्वामित्व में 25 वर्ग मीटर कवर्ड एरिया से अधिक का पक्का आवास हो। योजना में वरीयता क्रम का निर्धारण जो "रानी लक्ष्मी बाई पेंशन योजना" के अन्तर्गत पेंशन प्राप्त कर रहे हों एवं समाजवादी पेंशन योजना के लिए अनर्ह न हों। जो भूमिहीन हो। जो "हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013" के अन्तर्गत चिन्हित स्वच्छकार हो। जो दैनिक मजदूरी / खोमचा या फेरी वाला हो। जिसकी मुखिया एकल महिला (विधवा / तलाकशुदा) हो । जिसमें विकलांग व्यक्ति मुखिया हो तथा विकलांगता कम से कम 40 प्रतिशत हो। ऐसे विकलांग बच्चे जिनकी आयु 18 से कम हो और उनके माता-पिता समाजवादी पेंशन प्राप्त करने के मानक पूर्ण कर रहे हो। जिनके पास स्वयं का आवास न हो। अन्य पात्र अभ्यर्थी। वृद्धावस्था / किसान पेंशन योजना राज्य सरकार द्वारा 60 वर्ष या उससे ऊपर गरीबी रेखा से नीचेीवन यापन करने वाले वृद्धों को रु. 300/- प्रतिमाह पेंशन दी जाती है। इसमें रु. 100/- राज्यांश तथा रु. 200/- केन्द्रांश सम्मिलित है। भारत सरकार द्वारा 01 अप्रैल, 2011 से 80 वर्ष या उससे ऊपर के वृद्धजनों को रु. 500/- प्रतिमाह (केन्द्रांश) पेंशन प्रदान की जाती है। पेंशन स्वीकृत किये जाने हेतु लाभार्थी का नाम बी0पी0एल0 सूची 2002 में सम्मिलित होना आवश्यक है। पेंशनरों को पेंशन का भुगतान दो छमाही किश्तों में राष्ट्रीकृत बैंको अथवा बैंक एक्ट-1976 के अन्तर्गत संचालित क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको में खुले खातों के माध्यम से किया जाता है। वर्तमान में 3854824 वृद्धजनों को पेंशन उपलब्ध करायी जा रही है। शादी एवं बीमारी हेतु अनुदान य‍ह योजना अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के पुत्रियों की शादी एवं उनके परिजनों की बीमारी के इलाज हेतु विभाग द्वारा संचालित है। इस योजना के अन्तर्गत शासनादेश संख्या-1452/26-3-2005-4(188)/93 दिनांक 23 जून 2005 द्वारा पात्रता हेतु शहरी क्षेत्र में अधिकतम रु. 25546/- तथा ग्रामीण क्षेत्र में रु. 19884/- की वार्षिक आय सीमा निर्धारित की गयी है। अनुसूचित जाति की पुत्रियों की शादी हेतु रु. 10000/- तथा उनके परिजनों के इलाज हेतु रु. 5000/- की आर्थिक सहायता दी जाती है। अनुसूचित जाति की पुत्रियों की शादी योजना में बुन्देलखण्ड डिवीजन में रु. 20,000/- की धनराशि अनुमान्य है। राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना इस योजना में गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवार के मुख्य जीविकोपार्जन करने वाले व्यक्ति की मृत्यु होने पर रु. 30,000/- की एक मुश्त सहायता दिये जाने की व्यवस्था है। आवेदक की आयु सीमा 18 वर्ष सं अधिक एवं 60 वर्ष से कम हो। योजना में पूर्व में निर्धारित रु. 20,000/- की आर्थिक सहायता को बढ़ा कर दिनांक 3 सितम्बर, 2013 से रू० 30,000/- कर दिया गया है। अत्याचार उत्पीड़न की दशा में आर्थिक सहायता अनुसूचित जाति / जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम-1989) तथा पी0सी0आर0एक्ट 1955 के अन्तर्गत अनुसूचित जाति / जनजाति के व्यक्ति जो गैर अनुसूचित जाति / गैर अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों द्वारा किये गये अत्याचार उत्पीड़न से प्रभावित होते हैं, को अनुसूचित जाति / जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम-1989) के आधीन भारत के असाधारण राज पत्र दिनांक 31 मार्च, 1995 के भाग-2 खण्ड-3 में प्रख्यापित "अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियमावली 1995 के आधार पर आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, जिसमें 50 प्रतिशत केन्द्रांश तथा 50 प्रतिशत राज्यांश होता है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के अर्धशासकीय पत्र संख्या-11012/2/2008-पी0सी0आर0(डेस्क) दिनांक 20 जनवरी, 2012 द्वारा पूर्व में लागू सहायता की दरों में वृद्धि कर दी गयी है। राज्य सकरार द्वारा 14 मई, 2012 को इस संबंध में शासनादेश जारी करते हुए बढ़ी हुई दरों के अनुसार भुगतान करने के निर्देश समस्त जिलाधिकारियों को जारी किये जा चुके हैं। जनपद स्तर पर जिला समाज कल्याण अधिकारी द्वारा संबंधित जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक / पुलिस अधीक्षक से अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम-1989 एवं पी0सी0आर0 एक्ट 1955 के अन्तर्गत दर्ज अपराधों का विवरण एवं उत्पीड़न से प्रभावित अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के परिवारों का विवरण नियमित रूप से प्राप्त करके जिलाधिकारी द्वारा स्वीकृत किया जाता है। बजट की अनुपलब्धता की स्थिति में सहायता राशि का भुगतान संबंधित जिलाधिकारी द्वारा टी0आर0- 27 के अन्तर्गत धनराशि आहरित करके किया जाता है। राज्य सरकार अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लोगों के प्रति अस्पृश्यता की भावना समाप्त करने के लिए कृत संकल्प है तथा उसकी कोशिश है कि इस वर्ग के लोगों के प्रति कोई अत्याचार अथवा उनका उत्पीड़न न हो। अनुसूचित जाति/जनजाति व पिछड़े वर्ग का कल्याण कार्यक्रम प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के अनुसूचित जाति के छात्रो को शिक्षा के प्रति अभिप्रेरित करने एवं उन्हें समाज मे प्रतिष्ठापरक स्थान दिलाने के उद्देश्‍य से इन वर्गो के बालक / बालिकाओं को प्रत्येक स्तर पर छात्रव्रत्ति दिये जाने की योजना संचालित की जा रही हैं। अनुसूचित जाति पूर्वदशम छात्रव़त्ति योजना अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों के सम्बन्ध में शासनादेश संख्या 4158/26-3-95-4(215)/90 दिनांक 21.03.1995 द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार कक्षा 1-8 तक समस्त अनुसूचित जाति के छात्र/छात्राओं को छात्रव़त्ति प्रदान किये जाने की व्यवस्था की गयी है। कक्षा 9 व 10 के छात्रों को जिनके माता/पिता अभिभावको की वार्षिक आय रु. 2.00 लाख तक है, उन्हे छात्रव़त्ति दिये जाने की व्यवस्था है। पूर्वदशम् छात्रव़त्ति योजना के अन्तर्गत कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों को छात्रव़त्ति का भुगतान ग्राम शिक्षा निधि में खुले खाते के माध्यम से वर्ष में एक बार नगद किया जाता है। कक्षा 9 व 10 के छात्रों को छात्रव़त्ति का भुगतान बैंक में खुले छात्रों के खातों में एक मुश्त किया जाता है। कक्षा 1 से 5 तक रु. 25/- प्रतिमाह, कक्षा 6 से 8 तक रु. 40/- प्रतिमाह तथा कक्षा 9 व 10 रु. 150/- प्रतिमाह की दर से छात्रों हेतु 10 माह की तथा 350/- प्रतिमाह छात्रावासीय छात्र है। कक्षा 9-10 अनुसूचित जाति छात्रव़त्ति योजना वित्तीय वर्ष 2012-13 से केन्द्र पुरोनिधानित कर दी गई है। छात्रों का भुगतान समय से करने के लिये सरकार क़त संकल्प है, जिससे प्राथमिक स्तर पर छात्रों का ड्राप-आउट कम किया जा सके और अधिक से अधिक बच्चे स्कूल में शिक्षा हेतु आ सके। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले सामान्य वर्ग के समस्त शासकीय शासन से सहायता प्राप्त तथा शिक्षा विभाग से मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में अध्ययनरत सामान्य वर्ग के क्षा 1 से 10 तक के छात्रों को छात्रव़त्ति दी जाती हैं कक्षा 1 से 5 तक रु. 25/- प्रतिमाह, कक्षा 6 से 8 तक रु. 40/- प्रतिमाह तथा कक्षा 9 व 10 में रु. 60/- प्रतिमाह दर निर्धारित है। कक्षा 1-8 तक की छात्रव़त्ति नगद तथा कक्षा 9 व 10 की छात्रव़त्ति छात्रों के बैंक खातों में पूरे वर्ष की एक मुश्त अन्तरित की जाती है। दशमोत्तर कक्षाओं की छात्रवृत्ति (अनुसूचित जाति एवं सामान्य वर्ग) अनुसूचित जाति के उन समस्त छात्र / छात्राओं को दशमोत्तर कक्षाओं में छात्रवृत्ति एवं शुल्क प्रतिपूर्ति प्रदान की जाती है जिनके माता/पिता की वार्षिक आय समस्त स्त्रोतों से रु.2.00 लाख से अधिक नहीं है। यह छात्रवृत्ति भारत सरकार द्धारा निर्धारित दरों पर निम्नवत् उपलब्ध करायी जाती है। समूह पाठ्यक्रम डे स्कालर हास्टलर I डिग्री व मास्टर डिग्री स्तर के पाठ्यक्रम एम0‍फिल0-पी0एच0डी0 समस्त चिकित्सा पद्धति के पाठ्यक्रम, प्रौद्योगिकी, इंजीनिरिंग, प्लानिंग आर्किटेक्चर, डिजाइन, फैशन टेक्नालोजी, कृषि, पशुचिकित्सा, एलाइड साइंस, व्यवसाय वित्त, मैनेजमेंट, प्रशासन, कम्प्यूटर साइंस आदि पाठ्यक्रम, सी0पी0एल0 पाठ्यक्रम, मैनेजमेंट चिकित्सा के परास्नातक स्तरीय डिप्लामा पाठ्यक्रम, सी0ए0, आई0सी0डब्लू0ए0, सी0एस0, आई0सी0एफ0ए0, एल0एल0एम0, डी0लिट0, डी0एस0सी आदि 550 1200 II स्नातक / परास्नातक स्तरीय डिग्री , डिप्लोमा, सार्टिफिकेट पाठ्यक्रम यथा फार्मेसी, नर्सिंग एल0एल0बी0, बी0एफ0एस0, पेरामेंडिकल यथा-पुनर्वास,‍ निदान आदि मास कम्यूनिकेशन, होटल मैनेजमेंट, इंटीरियर डेकोरेशन, न्यूट्रेशन एण्ड डाइटेटिक्स , कामर्शियल आर्ट, टूरिज्म हास्पिटैलिटी, फाइनैन्शियल सर्विसज (ई0जी0बैंकिग इंश्योरेंस, टैक्सटायेनेटिक) जिसमें न्यूनतम प्रवेश योग्यता इण्टरमीडिएट अथवा समकक्ष हो तथा परास्नातक पाठ्यक्रम जो समूह-1 में सम्मिलित न हो। यथा-एम0ए0/एम0एस0सी0/एम0कॉम/एम0एड0/एम0फार्मा आदि। 530 820 III समस्त स्नातक स्तरीय पाठ्यक्रम जो समूह- I व II में सम्मिलित न हो, यथा बी.ए., बी.एसी.सी. एवं बी.कॉम आदि। 300 570 IV समस्त नान डिग्री स्तरीय कोर्स, जिनमे न्यूनतम प्रवेश योग्यता हाईस्कूल हो, आई0टी0आई0 तीन वर्षीय डिप्लोमा कोर्स (पॉलीटेक्निक) आदि। 230 380 वर्ष 2012-13 में उक्त योजना के लिए जारी की गयी नियमावली में शैक्षणिक संस्थाओं में छात्र / छात्राओं के नि:शुल्क प्रवेश की व्यवस्था की गयी है। छात्रवृत्ति एवं शुल्क प्रतिपूर्ति का भुगतान छात्रों के खाते में किया जायेगा। छात्र द्वारा शुल्क प्रतिपूर्ति की धनराशि प्राप्त होने के 15 दिन के अन्दर संस्था को उपल्बध करा दी जायेगी, जिसके लिए प्रवेश के समय ही संस्था एवं छात्रों के मध्य अनुबन्ध कराने की व्यवस्था है। अनुसूचित जाति / जनजाति के छात्रों को मेरिट उच्चीकृत किये जाने की केन्द्र पुरोनिधानित योजना अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों को रेमिडियल कोचिंग प्रदान करके उनके शैक्षिक अवरोधों को दूर करने के उद्देश्य से यह योजना प्रदेश के 6 जनपदों इलाहाबाद, लखनऊ, गोरखपुर, झांसी, आगरा, मुरादाबाद के राजकीय इण्टर कालेजों में वर्ष 1988-89 में शिक्षा विभाग द्वारा संचालित हैं। विभाग को शत-प्रतिशत भारत सरकार द्वारा सहायता दी जाती है। इसके अन्तर्गत प्रति छात्र 8000/- रूपया वार्षिक तथा प्रत्येक विद्यालयों के प्रधानाचार्य एवं 4 अध्यापकों को शिक्षण हेतु 7000/- रु. वार्षिक दिये जाने का प्राविधान है। वित्तीय वर्ष 2010-11 में रु. 45.45 लाख का प्राविधान था। वित्तीय वर्ष 2011-12 में रु. 70.50 लाख धनराशि की व्यवस्था थी। प्राविधिक शिक्षा सम्बन्धी सुविधायें अनुसूचित जाति तथा अन्य पिछड़े वर्गो के नवयुवकों को तकनीकी ज्ञान कराने हेतु विभाग द्वारा निम्न औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र एवं एक पॉलीटेक्निक संचालित है। गोविन्द वल्लभ पन्त पॉलीटेक्निक, मोहान रोड, लखनऊ। औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र, बक्शी का तालाब, लखनऊ। औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र, लाल डिग्गी पार्क, गोरखपुर। उपरोक्त केन्द्र राष्ट्रीय व्यवसायिक प्रशिक्षण परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त है। प्रशिक्षण की अवधि व्यवसाय के अनुसार अलग-अलग है। आई.ए.एस./ पी.सी.एस. तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु कोचिंग योजना अनुसूचित जाति के छात्र/छात्राओं को आई.ए.एस./पी.सी.एस. तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु 07 कोचिंग केन्द्र संचालित हैं, जिनकी स्वीकृत क्षमता 1300 के सापेक्ष 1072 प्रशिक्षणार्थी प्रवेशित है। इन कोचिंग केन्द्रों में वर्ष में 5-5 माह के दो सत्र चलाये जाते हैं। इन कोचिंग केन्द्रों में प्रवेशित छात्र/छात्राओं को नि:शुल्क कोचिंग, भोजन, आवास तथा लाइब्रेरी की सुविधा प्रदान की जाती है। इन कोचिंग केन्द्रों में प्रतिष्ठित संस्थानों, विश्वविद्यालयों तथा कोचिंग केन्‍द्रों से अतिथि व्याख्याता को लेक्चर हेतु मानदेय आधार पर आमंत्रित कर छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। वर्तमान समय में प्रदेश के अन्तर्गत कुल 7 कोचिंग केन्द्र संचालित हैं:- श्री छत्रपति शाहू जी महाराज शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ डा. अम्बेडकर आई.ए.एस./पी.सी.एस.कोचिंग केन्द्र आगरा आई.ए.एस./पी.सी.एस. कोचिंग केन्द्र,हापुड़, गाजियाबाद डा.अम्बेडकर आई.ए.एस./पी.सी.एस.कोचिंग केन्द्र अलीगढ़ सन्त रविदास आई.ए.एस./पी.सी.एस.कोचिंग केन्द्र वाराणसी आदर्श पूर्व परीक्षा प्रशिक्षण केन्द्र अलीगंज लखनऊ पी.सी.एस. (जे.) कोचिंग सेन्टर इलाहाबाद आश्रम पद्धति से विद्यालय संचालन कक्षा 1 से 12 तक (प्रत्येक कक्षा में 40 छात्र) अनुसूचित जाति, विमुक्त जाति, स्वच्छकार, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा सामान्य वर्ग के छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क शिक्षा, आवास, भोजन, वस्त्र, स्टेशनरी एवं खेलकूद की सुविधा प्रदान की जाती है। शासन द्वारा 90 राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालय स्वीकृत हैं जिसमें 76 विद्यालय संचालित हैं और 14 निर्माणाधीन हैं। इस योजनान्तर्गत अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा सामान्य वर्ग के क्रमश: 60, 25, 15 प्रतिशत गरीब बच्चों को प्रवेश परीक्षा में मेरिट के आधार पर प्रवेश दिये जाने का प्रावधान है। संचालित 76 विद्यालयों की कुल स्वीकृत प्रवेश क्षमता 36480 छात्र/छात्राओं की है। इसके अतिरिक्त स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से 3 विद्यालय भी संचालित हैं, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा शत-प्रतिशत वित्तीय अनुदान प्रदान किया जाता है। इन विद्यालयों में प्रति छात्र रु. 1200/- प्रतिमाह की दर से भोजन पर व्यय किया जाता है। लेखन सामग्री के रूप‍ में प्रतिवर्ष प्रति छात्र रु. 100/-, सूती वस्त्र पर रु. 850/-, गर्म वस्त्र पर रु. 1500/- तथा कक्षा 9-12 तक पाठ्य पुस्तक हेतु रु. 1000/- वार्षिक निर्धारित है। अनुसूचित जाति के छात्र/ छात्राओं हेतु छात्रावास संचालन अनुसूचित जाति के ऐसे छात्र/छात्राओं को जो अपने घरों से दूर रहकर शिक्षा ग्रहण करते हैं, आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से समाज कल्याण विभाग द्वारा छात्रावासों का निर्माण उत्तर प्रदेश समाज कल्याण निर्माण निगम के माध्यम से नि:शुल्क उपलब्ध करायी गयी भूमि पर कराया गया है। अब तक कुल 252 छात्रावासों का निर्माण कराया जा चुका है एवं 10 छात्रावास निर्माणाधीन हैं। इनमें से 225 छात्रावास संचालित है तथा 27 छात्रावासों के पद सृजन आदि की कार्यवाही करायी जा रही है। बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजनान्तर्गत भार सरकार द्वारा बालकों के छात्रावासों के निर्माण हेतु 50 प्रतिशत तथा बालिकाओं के छात्रावास निर्माण हेतु शत प्रतिशत सहायता प्रदान की जाती है। स्वैच्छिक संस्थाओं को पूर्व से निर्मित छात्रावास के विस्तार हेतु 90 प्रतिशत सहायता उपलब्ध करायी जाती है, जिसमें 45 प्रतिशत राज्यांश एवं 45 प्रतिशत केन्द्रांश होता है। स्रोत: समाज कल्याण विभाग, उत्तर प्रदेश व भारत सरकार।

नरेन्द्र मोदी की भारत सरकार द्वारा पिछले लगभग दो साल की नई योजनाएँ लिस्ट

नरेंद्र मोदी की भारत सरकार द्वारा पिछले लगभग दो साल में कई योजनाओं की शुरुआत की गयी है जिनका लाभ सीधा भारत की जनता को मिल रहा है. हम यहां पर लाये है उन सभी सरकारी योजनाओं की सूची हिंदी में. सभी 50 से ज्यादा नयी सरकारी योजनाओं की सूची जो भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने अभी तक शुरू की हैं या पुरानी बंद योजनाओं को दोबारा से शुरू किया है उनकी सूची नीचे है. प्रधानमंत्री जन धन योजना प्रधानमंत्री आवास योजना प्रधानमंत्री सुकन्या समृद्धि योजना प्रधानमंत्री मुद्रा योजना प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना अटल पेंशन योजना सांसद आदर्श ग्राम योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजनाये प्रधानमंत्री जन औषधि योजना प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना मेक इन इंडिया स्वच्छ भारत अभियान किसान विकास पत्र सॉइल हेल्थ कार्ड स्कीम डिजिटल इंडिया स्किल इंडिया बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना मिशन इन्द्रधनुष दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते योजना अटल मिशन फॉर रेजुवेनशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत योजना) स्वदेश दर्शन योजना पिल्ग्रिमेज रेजुवेनशन एंड स्पिरिचुअल ऑग्मेंटशन ड्राइव (प्रसाद योजना) नेशनल हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑग्मेंटशन योजना (ह्रदय योजना) उड़ान स्कीम नेशनल बाल स्वछता मिशन वन रैंक वन पेंशन (OROP) स्कीम स्मार्ट सिटी मिशन गोल्ड मोनेटाईजेशन स्कीम स्टार्टअप इंडिया, स्टन्डप इंडिया डिजिलोकर इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम श्यामा प्रसाद मुखेर्जी रुर्बन मिशन सागरमाला प्रोजेक्ट ‘प्रकाश पथ’ – ‘वे टू लाइट’ उज्वल डिस्कॉम असुरन्स योजना विकल्प स्कीम नेशनल स्पोर्ट्स टैलेंट सर्च स्कीम राष्ट्रीय गोकुल मिशन पहल – डायरेक्ट बेनिफिट्स ट्रांसफर फॉर LPG (DBTL) कंस्यूमर्स स्कीम नेशनल इंस्टीटूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना नमामि गंगे प्रोजेक्ट सेतु भारतं प्रोजेक्ट रियल एस्टेट बिल आधार बिल क्लीन माय कोच राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान – Proposed प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना प्रधान मंत्री ग्रामीण आवास योजना (इंदिरा आवास योजना का बदला हुआ नाम) उन्नत भारत अभियान टी बी मिशन 2020 धनलक्ष्मी योजना नेशनल अप्रेंटिसशिप प्रमोशन स्कीम गंगाजल डिलीवरी स्कीम प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान विद्यांजलि योजना स्टैंड अप इंडिया लोन स्कीम ग्राम उदय से भारत उदय अभियान सामाजिक अधिकारिता शिविर रेलवे यात्री बीमा योजना स्मार्ट गंगा सिटी मिशन भागीरथ (तेलंगाना में) विद्यालक्ष्मी लोन स्कीम स्वयं प्रभा प्रधान मंत्री सुरक्षित सड़क योजना (आने वाली योजना) शाला अश्मिता योजना (आने वाली योजना) प्रधान मंत्री ग्राम परिवहन योजना (आने वाली योजना) राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा अभियान – National Health Protection Mission (आने वाली योजना) राईट टू लाइट स्कीम (आने वाली योजना) राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव उड़ान – उडे देश का आम नागरिक डिजिटल ग्राम – (आने वाली योजना) ऊर्जा गंगा सौर सुजाला योजना एक भारत श्रेष्ठ भारत शहरी हरित परिवहन योजना (GUTS) 500 और 1000 के नोट बंद प्रधान मंत्री युवा योजना भारत नेशनल कार असेसमेंट प्रोग्राम (NCAP) अमृत OR AMRIT (अफोर्डेबल मेडिसिन एंड रिलाएबल इम्प्लांट्स फॉर ट्रीटमेंट) राष्ट्रीय आदिवासी उत्सव प्रवासी कौशल विकास योजना प्रधान मंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना गर्भवती महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता योजना वरिष्ठ नागरिकों के लिए Fixed Deposit स्कीम – वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना 2017 प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम – विचाराधीन जन धन खाता धारकों के लिए बीमा योजना महिला उद्यमियों के लिए वित्तीय सहायता योजना – आने वाली योजना

कैसे सिखने घर बैठे मोबाइल रिपेयरिंग

कैसे सीखे घर बैठे मोबाइल रिपेयर करना - Online Mobile Repairing Course कैसे सीखे घर बैठे मोबाइल रिपेयर करना How to learn mobile repair at home हमारा ऑनलाइन मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स अब घर बैठे सीख सकते है अगर आप अब भी सोच रहे है या विश्वास नही कर रहे कि ऑनलाइन घर बैठे मोबाइल रिपेयर करना कैसे सीख सकते है । तो हम आपको बता देते है कि कोई भी मोबाइल रिपेयर टैक्नीशियन खुद के स्तर पर कैसा भी मोबाइल रिपेयर नही कर सकता है उसके लिये उसे इन्टरनेट पर रिपेयरिंग विडियो, जम्पर बुक्स और अन्य कई साधनो से Help लेना पड़ती है । आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में युवा पीढी बहुत स्मार्ट बन गयी है । वो इन्टरनेट पर Search करते रहते है कि ऐसी कोई वेबसाइट मिल जाये जिस पर पुरा मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स हो और अभ्यास की तैयारी youtube पर Videos देखकर कर सकते है । इससे उन लोगों को घर बैठे अच्छी तरह से हिन्दी भाषा में फुल मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स की जानकारी हासिल हो जाती है । इसके अलावा कोर्स सीखने की फीस और आने जाने का किराया की भी बचत हो जाती है और उन बचाये गये पैसो को आप मोबाइल रिपेयरिंग Tools और Equipment खरीदने में करे । ऐसा ही कुछ हमारा सपना है । Mobi Tech Career आपको पुर्ण बेसिक मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स सीखा रहा है । रही बात practical अभ्यास की वो आपको Mobile Training Institute में पैसे लगाने से बेहतर तो घर बैठे ही कर सकते है । क्योकि हमने सारे Tools को Use करने की जानकारी आपको बता दी है । आजकल हम सब सुनते और देखते भी कि बड़े Institute अपना किताबी कोर्स Online कर रहे है और आने वाले समय सब कुछ Online होने वाला है । दोस्तो आप कभी भी अपनी Class खुद तय कर सकते है । आपको कई आने जाने की जरुरत नही है अब आप घर बैठे ही मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स कर सकते है । अब आप इतने तो बुद्धिमान है ही की Online Course से आपको कितना लाभ मिल रहा है । तो कृपया अपने दोस्तो को भी बताये शायद आपसे पहले कोई और उन्हें इस वेबसाइट के बारें में बता दे । हमारे साथ कुछ पाठक जुड़े है जो हमारी पहुँच को लोंगो तक पहुँचा रहे है । हम उनका दिल से स्वागत करते है जिन्होने खुद हमारी वेबसाइट को समझा और अब आगे अपने दोस्तो को भी बता रहे है । तभी तो पिछले महीने की तुलना में इसे महिने पर Visits दुगुने हो गये है । पढ़िये और पढ़ियेगा, सबको इस वेबसाइट के बारें बतायेंगा ।

शिवलिंग के सामने अक्षय कुमार ने साइन की फिल्म

बॉलीवुड भगवानों से हमेशा प्रेरित रहा है और फिल्म से जुड़ी हर बात में वह भगवान को शरीक रखता है. ऐसा ही कुछ एक नई फिल्म के बारे में भी देखने को मिला. अक्षय कुमार ने अपनी अगली फिल्म मुगलः द गुलशन कुमार स्टोरी को इंदौर के 300 साल पुराने माहेश्वर के शिव मंदिर में साइन किया. यह कॉन्ट्रेक्ट उन्होंने टीसीरीज के साथ साइन किया और इस मौके पर भूषण कुमार भी मौजूद थे. टॉयलेट... के प्रमोशन के लिए अक्षय ने मध्यप्रदेश में शौचालय के लिए खोदा गड्ढ़ा अक्षय इन दिनों इंदौर में ही शूटिंग कर रहे हैं. अक्षय और भूषण के लिए इस फिल्म के सेंटीमेंटल वैल्यू भी बहुत है. फिल्म को अक्षय ने एक झटके में हां कर दी थी. भूषण कुमार की खुशी का ठिकाना उस समय नहीं रहा जब अक्षय ने उन्हें इंदौर बुलाया और कहा कि कॉन्ट्रेक्ट को भगवान शिव के सामने साइन किया जाए. शिव भक्त थे गुलशन कुमार वैसे इस बात को हर कोई जानता है कि गुलशन कुमार शिव के बहुत बड़े भक्त थे. कॉन्ट्रेक्ट को तड़के अंजाम दिया गया. इस मौके पर राइटर-डायरेक्टर सुभाष कपूर और को-प्रोड्यूसर विक्रम मल्होत्रा भी मौजूद थे. 30 साल बाद अक्षय कुमार ने खोला अपनी जिंदगी का ये राज भूषण ने कहा- शिव मंदिर के अंदर मेरे पिता की बायोपिक पर हस्ताक्षर करना मेरे लिए ख्वाब जैसा था. मैं उस समय अक्षय की बगल में बैठकर अपने पिता की मौजूदगी को महसूस कर रहा था मैं इस बात को शब्दो में बयां नहीं कर सकता. अमिताभ या अक्षय में से कोई बनेगा पंजाब टूरिज्म का ब्रांड एंबेसडर! वैसे बायोपिक के दौर में एक और बायोपिक का आना वाकई बॉलीवुड के सच्ची कहानियों के बढ़ते प्रेम का इजहार करता है, और अक्षय फिर से एक और असल जिंदगी के पात्र को निभाते नजर आएंगे." - शिवलिंग के सामने अक्षय कुमार ने साइन की फिल्म! http://tz.ucweb.com/4_eGzA