मंगलवार, 4 अप्रैल 2017
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गरीबी दुर करने के वास्तु उपाय
दोस्तों कई बार हमारी कुछ गलत आदतें हमें कई तरह की समस्याओं में डाल सकती हैं। यदि हमें इनके बारे में पहले से पता हो तो हम आने वाली समस्याओं से बच सकते हैं। वास्तु के अनुसार यदि आप जीवन में चाहते हैं अपार धन और सुख शांति तो कुछ उपायों को करें। इन उपायों को करने से कभी दरिद्रता और गरीबी नहीं आती है। दरवाजे के सामने कभी भी बेडरूप के दरवाजे के सामने पैर करके ना सोएं। वास्तु के अनुसार एैसा अशुभ माना जाता है। और इसी वजह से घर पर लक्ष्मी नहीं आती है। घड़ी वास्तु में घड़ी का भी बहुत महत्व है। तकिये या सिर के नीचे या बेड के सामने व पीछे घड़ी रखकर नहीं सोना चाहते हैं। इससे इंसान का दिमाग नकारात्मक सोचता है और उसके पास कभी लक्ष्मी नहीं टिकती है। बेड़ आप जिस बिस्तर पर सोते हैं उसपर बहुत ही साधारण रंग की चादर और तकिया हो। अत्याधिक गहरे व चमकीले रंग वाली चादर व तकिये के कवर से भी लक्ष्मी नहंी टिकती है। बेड़ के बीच में पंखा या लैंप या फिर किसी भी तरह के इलेक्ट्रानिक उपकरण नहीं होना चाहिए। इससे इंसान के घर पर गरीबी रहती है। लंबी उम्र और पैसों की कमी दूर करने के लिए आप हमेशा अपने पैर पश्चिम दिशा और सिर दक्षिण दिशा में करके सोना चाहिए। पूर्वजों की फोटों जिस कमरे में आप सोते हैं वहां पर मंदिर ना हो और ना ही बेडरूम में पूर्वजों की फोटों भी नहीं होनी चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है। अपने बेडरूम में हिंसक जानवरों, युद्ध की तस्वीरें भी नहीं लगाएं। इसकी जगह आप कुछ सुंदर व मोहक तस्वीरें लगाएं। वास्तु के अनुसार बेडरूम में हल्के रंग का गुलाबी प्रकाश होना चाहिए। इससे घर में धन की कमी नहीं रहती है साथ ही पति पत्नी में आपस में प्रेम बना रहता है।" - गरीबी दूर करने के वास्तु उपाय – इस दिशा में पैर कर के न सोएं http://tz.ucweb.com/4_iBzb
कैसे और क्यों किया जाता है,नवरात्रि मे कन्या का पुजन
"कैसे और क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन नवरात्र पर्व के आठवें और नौवें दिन कन्या पूजन और उन्हें घर बुलाकर भोजन कराने का विधान होता है. दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन आखरी नवरात्रों में इन कन्याओ को नौ देवी स्वरुप मानकर इनका स्वागत किया जाता है | माना जाता है की इन कन्याओ को देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज से माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती है और अपने भक्तो को सुख समृधि का वरदान दे जाती है | नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बडा महत्व है. नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिविंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को उनका मनचाहा वरदान देती हैं. नवरात्रे के किस दिन करें कन्या पूजन : कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन और भोज रखते हैं और कुछ लोग अष्टमी के दिन | अष्टमी के दिन भी कन्या पूजन श्रेष्ठ रहता है | कन्या पूजन विधि जिन कन्याओ को भोज पर खाने के लिए बुलाना है , उन्हें एक दिन पहले ही न्योता दे दे | अब इन कन्याओ को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर इन सभी के पैरो को बारी बारी से अपने हाथो से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छुकर आशीष लेना चाहिए | उसके बाद पैरो पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए | फिर माँ भगवती का ध्यान करके इन देवी रुपी कन्याओ को इच्छा अनुसार भोजन कराये | भोजन के बाद कन्याओ को अपने सामर्थ के अनुसार दक्षिणा दे , उपहार दे और उनके पुनः पैर छूकर आशीष ले | नवरात्र पर्व पर कन्या पूजन में कितनी हो कन्याओं की उम्र ? कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए | यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं है | सिर्फ 9 दिन ही नहीं है यह कन्या देवियाँ : नवरात्रों में भारत में कन्याओ को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है | यह देवी तुल्य है | इनका सम्मान करना इन्हे आदर देना ही ईश्वर की पूजा के तुल्य है |" - कैसे और क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन, जानने के लिए क्लिक करें http://tz.ucweb.com/4_iA0T
कुंभकर्ण से जुडी़ कुछ रोचक बातें
आइए जानते है रामयण के एक प्रमुख पात्र और रावण के भाई कुम्भकर्ण से जुडी कुछ रोचक बातें। ब्रह्मा जी ने दिया था छः महीने सोने का वरदान रावण, विभीषण और कुंभकर्ण तीनों भाईयों ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो कुंभकर्ण को वरदान देने से पहले चिंतित थे। इस संबंध में श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि- पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ। तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ। इसका अर्थ यह है कि रावण को मनचाहा वरदान देने के बाद ब्रह्माजी कुंभकर्ण के पास गए। उसे देखकर ब्रह्माजी के मन में बड़ा आश्चर्य हुआ। जौं एहिं खल नित करब अहारू। होइहि सब उजारि संसारू।। सारद प्रेरि तासु मति फेरी। मागेसि नीद मास षट केरी।। ब्रह्माजी की चिंता का कारण ये था कि यदि कुंभकर्ण हर रोज भरपेट भोजन करेगा तो जल्दी ही पूरी सृष्टि नष्ट हो जाएगी। इस कारण ब्रह्माजी ने सरस्वती के द्वारा कुंभकर्ण की बुद्धि भ्रमित कर दी थी। कुंभकर्ण ने मतिभ्रम के कारण 6 माह तक सोते रहने का वरदान मांग लिया। कुंभकर्ण था अत्यंत बलवान: कुंभकर्ण के विषय में श्रीराम चरित मानस में लिखा है कि- अतिबल कुंभकरन अस भ्राता। जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता।। करइ पान सोवइ षट मासा। जागत होइ तिहुँ पुर त्रासा।। रावण का भाई कुंभकर्ण अत्यंत बलवान था, इससे टक्कर लेने वाला कोई योद्धा पूरे जगत में नहीं था। वह मदिरा पीकर छ: माह सोया करता था। जब कुंभकर्ण जागता था तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाता था। तब कुंभकर्ण को हुआ था दुख रावण द्वारा सीता हरण के बाद श्रीराम वानर सहित लंका पहुंच गए थे। श्रीराम और रावण, दोनों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध होने लगा, उस समय कुंभकर्ण सो रहा था। जब रावण के कई महारथी मारे जा चुके थे, तब कुंभकर्ण को जगाने का आदेश दिया गया। कई प्रकार के उपायों के बाद जब कुंभकर्ण जागा और उसे मालूम हुआ कि रावण ने सीता का हरण किया है तो उसे बहुत दुख हुआ था। जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान। कुंभकर्ण दुखी होकर रावण से बोला कि अरे मूर्ख। तूने जगत जननी का हरण किया है और अब तू अपना कल्याण चाहता है? इसके बाद कुंभकर्ण ने रावण को कई प्रकार से समझाया कि श्रीराम से क्षमायाचना कर लें और सीता को सकुशल लौटा दे। ताकि राक्षस कुल का नाश होने से बच जाए। इतना समझाने के बाद भी रावण नहीं माना। कुंभकर्ण को नारद ने दिया था तत्वज्ञान कुंभकर्ण को पाप-पुण्य और धर्म-कर्म से कोई लेना-देना नहीं था। वह तो हर 6 माह में एक बार जागता था। उसका पूरा एक दिन भोजन करने में और सभी का कुशल-मंगल जानने में व्यतीत हो जाता था। रावण के अधार्मिक कार्यों में उसका कोई सहयोग नहीं होता था। कुंभकर्ण राक्षस जरूर था, लेकिन अधर्म से दूर ही रहता था। इसी वजह से स्वयं देवर्षि नारद ने कुंभकर्ण को तत्वज्ञान का उपदेश दिया था। रावण का मान रखने के लिए कुंभकर्ण तैयार हो गया युद्ध के लिए जब रावण युद्ध टालने की बातें नहीं माना तो कुंभकर्ण बड़े भाई का मान रखते हुए युद्ध के लिए तैयार हो गया। कुंभकर्ण जानता था कि श्रीराम साक्षात भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें युद्ध में पराजित कर पाना असंभव है। इसके बाद भी रावण का मान रखते हुए, वह श्रीराम से युद्ध करने गया। श्रीराम चरित मानस के अनुसार कुंभकर्ण श्रीराम के द्वारा मुक्ति पाने के भाव मन में रखकर युद्ध करने गया था। उसके मन में श्रीराम के प्रति भक्ति थी। भगवान के बाण लगते ही कुंभकर्ण ने देह त्याग दी और उसका जीवन सफल हो गया।" - कुंभकर्ण से जुडी कुछ रोचक बातें http://tz.ucweb.com/4_iz8f