शनिवार, 11 मार्च 2017

बद्रीनाथ की दुल्हनिया फिल्म की कमाई देख दंग रह जायेगें

बता दे कि, शुक्रवार की सुबह मल्टीप्लेक्स में भीड़ कम थी, लेकिन दिन ढलते-ढलते मल्टीप्लेक्स में खासी भीड़ देखी गई। 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा ख़ासा कमाल किया है। पहले दिन की कमाई जानकर आपकी आँखे खुली की खुली रह जाएगी। फिल्म मेकर करन जौहर अच्छी तरह जानते है कि, कौन सी फिल्म में किस अभिनेता को लेना चाहिए और कितने पैसे लगाने चाहिए। यही वजह है कि, करन जौहर फिल्मो में लॉस नहीं होते। करन की फिल्म 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी शुरुवात की है। फिल्म ने पहले ही दिन यानी बीते शुक्रवार के दिन ही 12.25 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया है। इस खबर से करन के दफ्तर में खुशी का माहौल बना हुआ है। कल शाम से ही करन को बधाइयों के कई कॉल्स और सन्देश भेजे जा रहे है। तो वही दुसरी तरफ वरुण धवन औरआलिया भट्ट के भी खुशी कोई सीमा नहीं है। वरुण के लिए तो डबल खुशी का मौक़ा है, क्युकी वे अन्य अभिनेताओं की अपेक्षा सभी फिल्मे हिट दे रहे है, जबकि आलिया की पिछली फिल्म 'डिअर ज़िन्दगी' बॉक्स ऑफिस पर कुछ ख़ास कमाल नहीं कर पाई थी। वरुण धवन की अब तक सात फिल्में प्रदर्शित हुई हैं और कोई भी घाटे का सौदा नहीं रही है। अब आठवीं फिल्म भी सफल हो गई है। बता दे कि, शुक्रवार की सुबह मल्टीप्लेक्स में भीड़ कम थी, लेकिन दिन ढलते-ढलते मल्टीप्लेक्स में खासी भीड़ देखी गई। अगले कुछ दिन छुट्टियों के हैं और इसका पूरा फायदा फिल्म को मिलेगा। सामने भी कोई बड़ी फिल्म नहीं है और बद्रीनाथ के आगे का रास्ता आसान है। वैसे फिल्म की कहानी भी मदी ही मजेदार है, जिसकी वजह से फिल्म चलनी है। इस फिल्म को हम अपने परिवार के साथ मिलकर देख सकते है। फिल्म की कहानी बड़ी ही सीधी साधी है। बद्रीनाथ को अपने लिए एक टिपिकल दुल्हन की तलाश है, वैदेही को इंडिपेंडेंट लाइफ पसंद है। उन्हें मिलकर परम्परा को तोड़ना है और अपने किरदार को दोबारा परिभाषित करना है।

कल नक्शली हमला 12 जवान शहीद राजनाथ का एक-एक करोड़ देने का एलान नही मनायगें होली

कल नक्सली हमले में 12 जवान शहीद, रायपुर: छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार को एक बार नक्सलियों ने चुनौती दी है. कल इधर यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी जीत रही थी और उसी वक्त सुकमा में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 12 जवानों की जान ले ली. तीन साल पहले भी ऐसे ही हमले में 14 जवान शहीद हुए थे. रायपुर में सीआरपीएफ के 12 शहीद जवानों के शव उनके घर रवाना करने से पहले उन्हें आखिरी सलामी दी गई. शहीदों के घर शव पहुंचाने के लिए विशेष हेलीकॉप्टर का इंतजाम किया गया है. वहीं गृह मंत्री राजथान सिंह ने शहीदों को 1-1 करोड़ रुपये देने का ऐलान किया है. साथ ही सिंह ने होली भी नहीं मनाने की बात कही. घटना रायपुर से 400 किलोमीटर दूर सुकमा जिले के भेज्जी इलाके के कोट्टाचेरू गांव के पास की है, कल सुबह सवा नौ बजे पहले से घात लगाए नक्सलियों ने सीआरपीएफ की टुकड़ी पर अचानक अंधाधुंध फायरिंग कर दी. सीआरपीएफ जवान यहां बन रही उस सड़क को रोजाना की तरह खोलने गए थे जिसका निर्माण अब पूरा होने वाला है. रायपुर में अस्पताल में राजनाथ सिंह घटना में घायल हुए दो जवानों से भी मिले. यूपी में पार्टी की ऐतिहासिक जीत के जश्न को छोड़कर पहुंचे गृहमंत्री के मुताबिक शहीदों के परिजनों को 1-1 करोड़ का मुआवजा दिया जाएगा.

विन्ध्येश्वरी मा चालीसा

नमो नमो विन्ध्येश्‍वरी नमो नमो जगदम्ब। सन्तजनों के काज में माँ करती नहीं विलम्ब॥ चालीसा जय जय जय विन्ध्याचल रानी। आदि शक्ति जग विदित भवानी॥ सिंहवाहिनी जै जग माता। जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता॥ कष्ट निवारिनी जय जग देवी। जय जय जय जय असुरासुर सेवी॥ महिमा अमित अपार तुम्हारी। शेष सहस मुख वर्णत हारी॥ दीनन के दुःख हरत भवानी। नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी॥ सब कर मनसा पुरवत माता। महिमा अमित जगत विख्याता॥ जो जन ध्यान तुम्हारो लावै। सो तुरतहि वांछित फल पावै॥ तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी। तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी॥ रमा राधिका शामा काली। तू ही मात सन्तन प्रतिपाली॥ उमा माधवी चण्डी ज्वाला। बेगि मोहि पर होहु दयाला॥ तू ही हिंगलाज महारानी। तू ही शीतला अरु विज्ञानी॥ दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता। तू ही लक्ष्मी जग सुखदाता॥ तू ही जान्हवी अरु उत्रानी। हेमावती अम्बे निर्वानी॥ अष्टभुजी वाराहिनी देवी। करत विष्णु शिव जाकर सेवी॥ चोंसट्ठी देवी कल्यानी। गौरी मंगला सब गुण खानी॥ पाटन मुम्बा दन्त कुमारी। भद्रकाली सुन विनय हमारी॥ वज्रधारिणी शोक नाशिनी। आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी॥ जया और विजया बैताली। मातु सुगन्धा अरु विकराली। नाम अनन्त तुम्हार भवानी। बरनैं किमि मानुष अज्ञानी॥ जा पर कृपा मातु तव होई। तो वह करै चहै मन जोई॥ कृपा करहु मो पर महारानी। सिद्धि करिय अम्बे मम बानी॥ जो नर धरै मातु कर ध्याना। ताकर सदा होय कल्याना॥ विपत्ति ताहि सपनेहु नहिं आवै। जो देवी कर जाप करावै॥ जो नर कहं ऋण होय अपारा। सो नर पाठ करै शत बारा॥ निश्चय ऋण मोचन होई जाई। जो नर पाठ करै मन लाई॥ अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावे। या जग में सो बहु सुख पावै॥ जाको व्याधि सतावै भाई। जाप करत सब दूरि पराई॥ जो नर अति बन्दी महं होई। बार हज़ार पाठ कर सोई॥ निश्चय बन्दी ते छुटि जाई। सत्य बचन मम मानहु भाई॥ जा पर जो कछु संकट होई। निश्चय देबिहि सुमिरै सोई॥ जो नर पुत्र होय नहिं भाई। सो नर या विधि करे उपाई॥ पांच वर्ष सो पाठ करावै। नौरातर में विप्र जिमावै॥ निश्चय होय प्रसन्न भवानी। पुत्र देहि ताकहं गुण खानी। ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै। विधि समेत पूजन करवावै॥ नित प्रति पाठ करै मन लाई। प्रेम सहित नहिं आन उपाई॥ यह श्री विन्ध्याचल चालीसा। रंक पढ़त होवे अवनीसा॥ यह जनि अचरज मानहु भाई। कृपा दृष्टि तापर होई जाई॥ जय जय जय जगमातु भवानी। कृपा करहु मो पर जन जानी॥

भगवान शिव से जुडी़ 12गुप्त बातें जानिए

भगवान शिव से जुड़ी 12 गुप्त बातें, जानिए | Bhagwan Shiv Ji se judi 12 gupt 166,647 Views भगवान शिव से जुड़ी 12 गुप्त बातें, जानिए | Bhagwan Shiv Ji se judi 12 gupt baatein ‘शिव का द्रोही मुझे स्वप्न में भी पसंद नहीं।’- भगवान राम आइंस्टीन (einstein) से पूर्व शिव ने ही कहा था कि ‘कल्पना’ ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। शिव ने इस आधार पर ध्यान की कई विधियों का विकास किया। भगवान शिव (bhagwan shri shiv ji) दुनिया के सभी धर्मों का मूल हैं। शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है। आज से 15 से 20 हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने धरती पर कदम रखे थे, तब उस काल में धरती हिमयुग की चपेट में थी। इस दौरान भगवान शंकर ने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान बनाया। भगवान विष्णु (bhagwan shri vishnu ji) ने समुद्र को और ब्रह्मा ने नदी के किनारे को अपना स्थान बनाया था। पुराण कहते हैं कि जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था। इन तीनों से सब कुछ हो गया। वैज्ञानिकों (scientists) के अनुसार तिब्बत (tibet) धरती की सबसे प्राचीन भूमि है और पुरातनकाल में इसके चारों ओर समुद्र हुआ करता था। फिर जब समुद्र हटा तो अन्य धरती का प्रकटन हुआ और इस तरह धीरे-धीरे जीवन भी फैलता गया। सर्वप्रथम भगवान शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें आदि देव भी कहा जाता है। आदि का अर्थ प्रारंभ। शिव को ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है। इस ‘आदिश’ शब्द से ही ‘आदेश’ शब्द बना है। नाथ साधु जब एक–दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं- आदेश। भगवान शिव के अलावा ब्रह्मा और विष्णु ने संपूर्ण धरती पर जीवन की उत्पत्ति और पालन का कार्य किया। सभी ने मिलकर धरती को रहने लायक बनाया और यहां देवता, दैत्य, दानव, गंधर्व, यक्ष और मनुष्य की आबादी (human growth) को बढ़ाया। महाभारत काल : ऐसी मान्यता है कि महाभारत (mahabharat) काल तक देवता धरती पर रहते थे। महाभारत के बाद सभी अपने-अपने धाम चले गए। कलयुग के प्रारंभ होने के बाद देवता बस विग्रह रूप में ही रह गए अत: उनके विग्रहों की पूजा की जाती है। पहले भगवान शिव थे रुद्र : वैदिक काल के रुद्र और उनके अन्य स्वरूप तथा जीवन दर्शन को पुराणों में विस्तार मिला। वेद जिन्हें रुद्र कहते हैं, पुराण उन्हें शंकर और महेश कहते हैं। वराह काल के पूर्व के कालों में भी शिव थे। उन कालों की शिव की गाथा अलग है। देवों के देव महादेव : देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा (competition) चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। भगवान शिव ने क्यों मार दिए थे विशालकाय मानव… ब्रह्मा ने बनाए विशालकाय मानव : सन् 2007 में नेशनल जिओग्राफी की टीम ने भारत और अन्य जगह पर 20 से 22 फिट मानव के कंकाल ढूंढ निकाले हैं। भारत में मिले कंकाल को कुछ लोग भीम पुत्र घटोत्कच और कुछ लोग बकासुर का कंकाल (skeleton) मानते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार सतयुग में इस तरह के विशालकाय मानव हुआ करते थे। बाद में त्रेतायुग में इनकी प्रजाति नष्ट हो गई। पुराणों के अनुसार भारत में दैत्य, दानव, राक्षस और असुरों की जाति का अस्तित्व था, जो इतनी ही विशालकाय हुआ करती थी। भारत में मिले इस कंकाल के साथ एक शिलालेख भी मिला है। यह उस काल की ब्राह्मी लिपि का शिलालेख है। इसमें लिखा है कि ब्रह्मा ने मनुष्यों में शांति स्थापित करने के लिए विशेष आकार के मनुष्यों की रचना की थी। विशेष आकार के मनुष्यों की रचना एक ही बार हुई थी। ये लोग काफी शक्तिशाली (powerful) होते थे और पेड़ (tree) तक को अपनी भुजाओं से उखाड़ सकते थे। लेकिन इन लोगों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और आपस में लड़ने के बाद देवताओं को ही चुनौती देने लगे। अंत में भगवान शंकर ने सभी को मार डाला और उसके बाद ऐसे लोगों की रचना फिर नहीं की गई। भगवान शिव का धनुष पिनाक : शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल (clouds) फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त (finish) कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवरात को सौंप दिया गया था। उल्लेखनीय है कि राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने सभी देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठानी। एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, तब उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया। देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया। भगवान शिव का चक्र : चक्र को छोटा, लेकिन सबसे अचूक अस्त्र माना जाता था। सभी देवी-देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र (sudarshan chakra) का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पड़ने पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। पार्वती ने इसे परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुराम से मिला। त्रिशूल : इस तरह भगवान शिव के पास कई अस्त्र-शस्त्र (weapons) थे लेकिन उन्होंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र देवताओं को सौंप दिए। उनके पास सिर्फ एक त्रिशूल ही होता था। यह बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है। इसमें 3 तरह की शक्तियां हैं- सत, रज और तम। प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन। इसके अलावा पाशुपतास्त्र भी शिव का अस्त्र है। भगवान शिव के गले में जो सांप है उसका नाम जानिए. भगवान शिव का सेवक वासुकी : शिव को नागवंशियों से घनिष्ठ लगाव था। नाग कुल के सभी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में ही रहते थे। कश्मीर का अनंतनाग इन नागवंशियों का गढ़ था। नागकुल के सभी लोग शैव धर्म का पालन करते थे। नागों के प्रारंभ में 5 कुल थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक। ये शोध के विषय हैं कि ये लोग सर्प थे या मानव या आधे सर्प और आधे मानव? हालांकि इन सभी को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है तो निश्‍चित ही ये मनुष्य (human) नहीं होंगे। नाग वंशावलियों में ‘शेषनाग’ को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेषनाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है। ये भगवान विष्णु के सेवक थे। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए, जो शिव के सेवक बने। फिर तक्षक और पिंगला ने राज्य संभाला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य (state) था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से ‘तक्षक’ कुल चलाया था। उक्त पांचों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं। उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादि नाम से नागों के वंश हुए जिनके भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था। जानिए अमरनाथ के अमृत वचन किस नाम से सुरक्षित… अमरनाथ के अमृत वचन : शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती (mata parvati) को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा (cave) में जो ज्ञान दिया, उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है। अमरनाथ के अमृत वचन : शिव द्वारा मां पार्वती को जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत ही गूढ़-गंभीर तथा रहस्य से भरा ज्ञान था। उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है। योगशास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव के ‘‍विज्ञान भैरव तंत्र’ और ‘शिव संहिता’ में उनकी संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है। भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग की है। भगवान शिव कहते हैं- ‘वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:’ अर्थात वाम मार्ग अत्यंत गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है। -मेरुतंत्र भगवान शिव ने अपना ज्ञान सबसे पहले किसे दिया… भगवान शिव के शिष्य : शिव तो जगत के गुरु हैं। मान्यता अनुसार सबसे पहले उन्होंने अपना ज्ञान सप्त ऋषियों को दिया था। सप्त ऋषियों ने शिव से ज्ञान लेकर अलग-अलग दिशाओं में फैलाया और दुनिया के कोने-कोने में शैव धर्म, योग और ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। इन सातों ऋषियों ने ऐसा कोई व्यक्ति नहीं छोड़ा जिसको शिव कर्म, परंपरा आदि का ज्ञान नहीं सिखाया गया हो। आज सभी धर्मों में इसकी झलक देखने को मिल जाएगी। परशुराम और रावण भी शिव के शिष्य (students) थे। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा (culture) की शुरुआत ‍की थी जिसके चलते आज भी नाथ, शैव, शाक्त आदि सभी संतों में उसी परंपरा का निर्वाह होता आ रहा है। आदि गुरु शंकराचार्य और गुरु गोरखनाथ ने इसी परंपरा और आगे बढ़ाया। सप्त ऋषि ही शिव के मूल शिष्य : भगवान शिव ही पहले योगी हैं और मानव स्वभाव की सबसे गहरी समझ उन्हीं को है। उन्होंने अपने ज्ञान के विस्तार के लिए 7 ऋषियों को चुना और उनको योग के अलग-अलग पहलुओं का ज्ञान दिया, जो योग के 7 बुनियादी पहलू बन गए। वक्त के साथ इन 7 रूपों से सैकड़ों शाखाएं निकल आईं। बाद में योग में आई जटिलता को देखकर पतंजलि ने 300 ईसा पूर्व मात्र 200 सूत्रों में पूरे योग शास्त्र को समेट दिया। योग का 8वां अंग मोक्ष है। 7 अंग तो उस मोक्ष तक पहुंचने के लिए है। भगवान शिव के गणों के नाम… भगवान शिव गण : भगवान शिव की सुरक्षा (safety) और उनके आदेश को मानने के लिए उनके गण सदैव तत्पर रहते हैं। उनके गणों में भैरव को सबसे प्रमुख माना जाता है। उसके बाद नंदी का नंबर आता और फिर वीरभ्रद्र। जहां भी शिव मंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरवजी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। भैरव दो हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। दूसरी ओर वीरभद्र शिव का एक बहादुर गण था जिसने शिव के आदेश पर दक्ष प्रजापति का सर धड़ से अलग कर दिया। देव संहिता और स्कंद पुराण के अनुसार शिव ने अपनी जटा से ‘वीरभद्र’ नामक गण उत्पन्न किया। इस तरह उनके ये प्रमुख गण थे- भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। ये सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा (human, soul) आदि की खैर-खबर रखते हैं। भगवान शिव के द्वारपाल… भगवान शिव के द्वारपाल : कैलाश पर्वत के क्षेत्र में उस काल में कोई भी देवी या देवता, दैत्य या दानव शिव के द्वारपाल की आज्ञा के बगैर (without permission) अंदर नहीं जा सकता था। ये द्वारपाल संपूर्ण दिशाओं में तैनात थे। इन द्वारपालों के नाम हैं- नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल। उल्लेखनीय है कि शिव के गण और द्वारपाल नंदी ने ही कामशास्त्र की रचना की थी। कामशास्त्र के आधार पर ही कामसूत्र लिखा गया था। भगवान शिव पंचायत को जानिए… भगवान शिव पंचायत : पंचायत का फैसला अंतिम माना जाता है। देवताओं और दैत्यों के झगड़े (fight) आदि के बीच जब कोई महत्वपूर्ण निर्णय (important decision) लेना होता था तो शिव की पंचायत का फैसला अंतिम होता था। शिव की पंचायत में 5 देवता शामिल थे। ये 5 देवता थे:- 1. सूर्य, 2. गणपति, 3. देवी, 4. रुद्र और 5. विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं। भगवान शिव के पार्षद… भगवान शिव पार्षद : जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं ‍उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि ‍शिव के पार्षद हैं। यहां देखा गया है कि नंदी और भृंगी गण भी है, द्वारपाल भी है और पार्षद भी। भगवान शिव के प्रतीक चिह्न भगवान शिव चिह्न : वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्ध चंद्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं। हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं। भगवान शिव की जटाएं हैं। उन जटाओं में एक चंद्र चिह्न होता है। उनके मस्तष्क पर तीसरी आंख है। वे गले में सर्प और रुद्राक्ष की माला लपेटे रहते हैं। उनके एक हाथ में डमरू तो दूसरे में त्रिशूल है। वे संपूर्ण देह पर भस्म लगाए रहते हैं। उनके शरीर के निचले हिस्से को वे व्याघ्र चर्म से लपेटे रहते हैं। वे वृषभ की सवारी करते हैं और कैलाश पर्वत पर ध्यान लगाए बैठे रहते हैं। माना जाता है कि केदारनाथ और अमरनाथ में वे विश्राम करते हैं। भस्मासुर से बचकर यहां छिप गए थे शिव… भगवान शिव की गुफा : शिव ने एक असुर को वरदान दिया था कि तू जिसके भी सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा। इस वरदान के कारण ही उस असुर का नाम भस्मासुर हो गया। उसने सबसे पहले शिव को ही भस्म करने की सोची। भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भाग गए। उनके पीछे भस्मासुर भी भागने लगा। भागते-भागते शिवजी एक पहाड़ी के पास रुके और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। बाद में विष्णुजी ने आकर उनकी जान बचाई। माना जाता है कि वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की अराधना करते हैं। भगवान राम ने किया था भगवान शिव से युद्ध : सभी जानते हैं कि राम के आराध्यदेव शिव हैं, तब फिर राम कैसे शिव से युद्ध कर सकते हैं? पुराणों में विदित दृष्टांत के अनुसार यह युद्ध श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान लड़ा गया। यज्ञ का अश्व कई राज्यों को श्रीराम की सत्ता के अधीन किए जा रहा था। इसी बीच यज्ञ का अश्व देवपुर पहुंचा, जहां राजा वीरमणि का राज्य था। वीरमणि ने भगवान शंकर की तपस्या कर उनसे उनकी और उनके पूरे राज्य की रक्षा का वरदान मांगा था। महादेव के द्वारा रक्षित होने के कारण कोई भी उनके राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं करता था। जब यज्ञ का घोड़ा उनके राज्य में पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया। ऐसे में अयोध्या और देवपुर में युद्ध होना तय था। महादेव ने अपने भक्त को मुसीबत में जानकर वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी, भृंगी सहित अपने सारे गणों को भेज दिया। एक और राम की सेना तो दूसरी ओर शिव की सेना थी। वीरभद्र ने एक त्रिशूल से राम की सेना के पुष्कल का मस्तक काट दिया। उधर भृंगी आदि गणों ने भी राम के भाई शत्रुघ्न को बंदी बना लिया। बाद में हनुमान भी जब नंदी के शिवास्त्र से पराभूत होने लगे तब सभी ने राम को याद किया। अपने भक्तों की पुकार सुनकर श्रीराम तत्काल ही लक्ष्मण और भरत के साथ वहां आ गए। श्रीराम ने सबसे पहले शत्रुघ्न को मुक्त कराया और उधर लक्ष्मण ने हनुमान को मुक्त करा दिया। फिर श्रीराम ने सारी सेना के साथ शिव गणों पर धावा बोल दिया। जब नंदी और अन्य शिव के गण परास्त होने लगे तब महादेव ने देखा कि उनकी सेना बड़े कष्ट में है तो वे स्वयं युद्ध क्षेत्र में प्रकट हुए, तब श्रीराम और शिव में युद्ध छिड़ गया। भयंकर युद्ध के बाद अंत में श्रीराम ने पाशुपतास्त्र निकालकर कर शिव से कहा, ‘हे प्रभु, आपने ही मुझे ये वरदान दिया है कि आपके द्वारा प्रदत्त इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए बिना नहीं रह सकता इसलिए हे महादेव, आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आप पर ही करता हूं’, ये कहते हुए श्रीराम ने वो महान दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया। वो अस्त्र सीधा महादेव के ह्वदयस्थल में समा गया और भगवान रुद्र इससे संतुष्ट हो गए। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा कि आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो इच्छा हो वर मांग लें। इस पर श्रीराम ने कहा कि ‘हे भगवन्, यहां मेरे भाई भरत के पुत्र पुष्कल सहित असंख्य योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए है, कृपया कर उन्हें जीवनदान दीजिए।’ महादेव ने कहा कि ‘तथास्तु।’ इसके बाद शिव की आज्ञा से राजा वीरमणि ने यज्ञ का अश्व श्रीराम को लौटा दिया और श्रीराम भी वीरमणि को उनका राज्य सौंपकर शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर चल दिए। ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म एक रहस्य है। तीनों के जन्म की कथाएं वेद और पुराणों में अलग-अलग हैं, लेकिन उनके जन्म की पुराण कथाओं में कितनी सच्चाई है और उनके जन्म की वेदों में लिखी कथाएं कितनी सच हैं, इस पर शोधपूर्ण दृष्टि की जरूरत है। यहां यह बात ध्यान रखने की है कि ईश्वर अजन्मा है। अलग-अलग पुराणों में भगवान शिव और विष्णु के जन्म के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है जबकि विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु स्वयंभू हैं। शिव पुराण के अनुसार एक बार जब भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए जबकि विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं। भगवान शिव के जन्म की कहानी हर कोई जानना चाहता है। श्रीमद् भागवत के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे, तब एक जलते हुए खंभे से जिसका कोई भी ओर-छोर ब्रह्मा या विष्णु नहीं समझ पाए, भगवान शिव प्रकट हुए। यदि किसी का बचपन है तो निश्चत ही जन्म भी होगा और अंत भी। विष्णु पुराण में शिव के बाल रूप का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए तपस्या की। तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका नाम ‘ब्रह्मा’ नहीं है इसलिए वह रो रहा है। तब ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रुद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’। शिव तब भी चुप नहीं हुए इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया, पर शिव को नाम पसंद नहीं आया और वे फिर भी चुप नहीं हुए। इस तरह शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा ने 8 नाम दिए और शिव 8 नामों (रुद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव) से जाने गए। शिव पुराण के अनुसार ये नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे।