मंगलवार, 14 मार्च 2017

अगर आपको है मोहब्बत तो आप ये जरुर पढे़

अगर आपको भी है मोहब्बत किसी से… तो ज़रा इस शायरी पर गौर फर्माएं 7 Mar. 2017 Relationships Followers 3308 Follow आप अगर सही मायनों में किसी से प्यार करते हैं तो मोहब्बत की इस शेर-ओ-शायरी पर आपका गौर फर्माना जरूरी है। अपने साथी के मिज़ाज को खुश करने के लिए इससे बेहतर कुछ भी नहीं। जब से देखा है तेरी आखों में मोहब्बत में ऐसे हुए हैं दीवाने कि तुम्हें कोई और देखे तो अच्छा नहीं लगता कुछ तुम कोरे-कोरे से, कुछ हम सादे-सादे से, एक आसमां पर जैसे, दो चाँद आधे-आधे से… रेशमी जुल्फें हैं तेरी, मखमली है चेहरा तेरा हो जाऊं तुम्हारा या बना लूं तुम्हें अपना हमारे पहले प्यार की ख़ुश्बू तेरी सांसों से आ रही है तेरे होठों पे हल्की सी हंसी है मेरी धड़कन बहकती जा रही है। तेरा दीदार करने को जी चाहता है खुद को मिटाने का जी चाहता है पिला दो मुझे मस्ती के प्याले, मस्ती में आने को मेरा जी चाहता है…

PM की पाठशाला से पाँच सबक सीख सकता है विपक्ष

विधानसभा चुनावों में बीजेपी की बंपर जीत के बाद राजनीतिक विश्लेषक इसके मायने निकालने में जुटे हैं। विपक्षी दलों के लिहाज से बात करें तो उनके लिए भी इतनी करारी हार हैरत में डालने वाली है। यूपी और उत्तराखंड में इतनी करारी हार से 2019 में विपक्ष की संभावनाओं को भी गहरा आघात लगा है। हालांकि विपक्षी दल इसके लिए पीएम मोदी की रणनीति को ही जिम्मेदार नहीं बता सकते, बल्कि उन्हें अपनी जीत के लिए खुद भी कुछ सबक सीखने होंगे। इस हार के बाद विपक्षी दल भविष्य के लिए अपनी रणनीति में बदलाव और वैचारिक धरातल में परिवर्तन की कोशिशों में लग सकते हैं। इसी कोशिश में वे पीएम मोदी से ही 5 सबक सीख सकते हैं। 1.अतिवादी 'आजादी ब्रिगेड' से रहना होगा दूर विपक्षी दलों को रैडिकल-लेफ्ट आजादी ब्रिगेड को समर्थन करने से बचना होगा। ऐसे अतिवादी समूहों का समर्थन कर कई विपक्षी दलों ने खुद को एक वर्ग तक सीमित कर लिया है। ऐसे में बाकी बचे स्पेस को पीएम मोदी और बीजेपी ने कब्जा लिया है। इसके अलावा परंपरागत रूप से मिडिल क्लास की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी ने गरीबों के बीच भी अपनी पैठ बनाई है। इसकी वजह यह है कि वामपंथी विचारधारा वाले विपक्षी नेताओं ने गरीबों के मुद्दे उठाने की बजाय अतिवादी समूहों के मुद्दों पर समर्थन करने का रुख अपना लिया है। 2. 'न्यू इंडिया' को समझना होगा पीएम मोदी ने अपने भाषणों और नीतियों से खुद की छवि एक ऐसे नेता के तौर पर गढ़ी है, जिसे देश की आकांक्षी जनता अपने सपनों को सच करने वाला नेता मानती है। खासतौर पर तकनीकी दक्षता और ग्लोबल ट्रेंड्स की जानकारी रखने वाले नेता की उनकी छवि है। विपक्षी नेता अब भी पुरानी रणनीति पर ही चल रहे हैं। एक दौर था जब मिडिल क्लास छोटा था और लोअर क्लास बड़े पैमाने पर अशिक्षित था। लेकिन, अब मिडिल क्लास से लेकर लोअर क्लास तक के एक बड़े तबके के पास स्मार्टफोन है। ऐसे में विपक्षी दल जब डिजिटल इंडिया जैसे अभियानों का विरोध करते हैं तो जनता से बहुत ज्यादा समर्थन नहीं मिलता है। एसपी चीफ अखिलेश यादव ने एक सभा में कहा था कि फोन में म्यूजिक सुना जा सकता है, विडियो देखे जा सकते हैं, लेकिन यह बैंक का काम नहीं कर सकते। इसके अलावा राहुल गांधी एक रैली में जब अपना फटा कुर्ता दिखाते हैं तो इस पर कोई विश्वास नहीं करता। भारत आगे बढ़ चुका है, अब विपक्षी दलों को भी बदलना होगा। 3. वैचारिक बदलाव को तैयार रहना होगा विपक्षी दलों को वोटरों को हर बार लुभाने वाले सिद्धांतों को अब बदलना होगा। सेकुलरिज्म और सोशल जस्टिस के सिद्धांत कई बार अवसरवाद से समझौता करते दिखते हैं। सोशल मीडिया के आने के बाद से अब राजनीतिक वादों और सिद्धांतों पर सवाल पूछे जाने लगे हैं। पहले जैसा दौर नहीं रहा है, जब देश के बड़े हिस्से में सड़कें तक नहीं पहुंची थीं। बीजेपी ने दलित ऑइकॉन बीआर आंबेडकर को अपनाया है। इसकी वजह यह है कि उसे पता है कि राष्ट्रीय चरित्र हासिल करने के लिए उसे दलितों के बीच अपना आधार बनाना ही होगा। वैचारिक तौर पर दृढ़ता रखना रैडिकल लेफ्ट के लिए सही हो सकता है, लेकिन चुनावी राजनीति में यह गलत साबित होता है। 4.अवसरवादी गठजोड़ काम नहीं आते भारत में तीसरे मोर्चे की कई सरकारों के खराब अनुभवों के बाद जनता अब ऐसे महागठबंधनों को संदेह की नजर से देखती है। यदि बिहार में महागठबंधन ने बीजेपी को हराया तो इसे हर जगह लागू नहीं किया जा सकता। पीएम मोदी ने अपनी छवि को बदलने में सफलता हासिल की है। हर बार सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ने के नाम पर ही उनके विपक्षी मजबूती से नहीं उभर सकते। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और एसपी के गठबंधन की छवि अवसरवादी जोड़ के तौर पर बनी। 5. मीडिया पर न करें विश्वास मीडिया कई बार जमीनी हकीकत से दूर रखते हुए विपक्षी दलों को इस भ्रम में ले आता है कि वह मजबूत स्थिति में हैं। उत्तर प्रदेश में इसी तरह से मीडिया के जरिए विपक्ष में भ्रम की स्थिति पैदा हुई, जबकि ग्राउंड पर मोदी की लहर चलने जैसी स्थिति बन रही थी।

धोनी लेगें 19 को बडे़ फैसले

नई दिल्ली: इंग्लैंड के खिलाफ जून 2017 में होने वाली चैंपियंस ट्रॉफी भारत के सबसे सफल क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की किस्मत का फैसला करेगी। इंग्लैंड में होने वाली 1 जून से 18 जून के बीच चैंपियंस ट्रॉफी ही तय करेगी कि धोनी 2019 वल्र्ड कप में खेल सकते हैं या नहीं। चैंपियंस ट्रॉफी तय करेगी धोनी के भविष्य का फैसला यह बात हम नहीं धोनी के बचपन के कोच केशव बनर्जी का कहना है। मीडिया से बातचीत के दौरान केशव बनर्जी ने कहा कि जून 2017 में होने वाली चैंपियंस ट्रॉफी भारत के इस सबसे सफल क्रिकेट कप्तान के भविष्य का फैसला करेगी। धोनी के बचपन के कोच ने उनको लेकर जिस तरह का बयान दिया है उससे तो यही लगता है कि ये धोनी के कोच की निजी राय होगी। धोनी ने छोड़ दी है सीमित ओवरों की कप्तानी साल 2014 में ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहकर सभी को हैरान करने वाले धोनी ने जनवरी में भारत की सीमित ओवरों की कप्तानी भी छोड़ दी थी। कप्तानी छोडऩे के बाद धोनी ने इंग्लैंड के खिलाफ 3 मैचों की वनडे सीरीज में 55 की औसत से 165 रन बनाए थे 1 शतक के साथ। जिसके बाद ये कहा जा रहा है कि कप्तानी छोडऩे के बाद धोनी खुलकर खेल रहे हैं।