बचपन की बाते वैसै हमेशा सबको याद आती है, हम उसी बचपन की कुछ यादें आप सबके बीच शेयर करने जा रहे है,जब होस सभाले तो तिसरी कक्षा मे थे, तब हम सब पटरी लेकर पढ़ने जाते थे,उस समय लिखने की जगह चाक के बजाय दुध्दी आती थी,स्कूल जाते तो १ नं. २ नं. कहकर अक्सर जाते रहते हमेशा यही ईन्तजार रहता कि कब घंटी बजे घर जाये रेसिस्टेंस मे गेन्तडी खेलना घर जाकर गोली खेलना तब कबड्डी कुडी कुदना और जब बकरी चराने जाते तो उतुल पुतुल खेलना ,पेड़ों पर चढकर आती पाती खेलना जब रात को किसी की बारात आती तो विडियो की आवाज सुनकर माता पिता की चोरी से दुर दुर तक चले जाना उस समय किसी किसी के यहा टीवी रहा करता था,वो भी ब्लैकेन वाईट टीवी रहती थी,उस समय एक धारावाहिक युग आता था,ये धारावाहिक देखना क लिए हम घंटी छोड़कर भाग आते थे,लिखने के लिए कलम दवाद हुआ करता था,वो भी कलम सरपत की ढाडा की बनाकर लिखते थे
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